गधे से सीखें संतुष्टि का भाव
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस प्रकार गधे में यह गुण होता है कि वह बिना सर्दी-गर्मी का विचार किए हुए अत्यंत थक जाने पर भी बोझ ढोता है और फिर भी हमेशा संतुष्ट होकर विचरण करता है। उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन में लगातार आगे बढ़ने के लिए सहनशीलता और संतोषी भाव रखना चाहिए।
बगुले से सीखें संयमित रहना
चाणक्य नीति के अनुसार जो व्यक्ति अपनी सभी इंद्रियों पर विजय पा लेता है उसे जीवन में हर मोड़ पर सफलता हासिल होती है। जैसे बगुला अपनी सभी इन्द्रियों को संयम में रखकर अपना शिकार करता है। उसी तरह मनुष्य को अपनी काबिलियत, परिस्थितियों, समय और जगह को भली-भांति समझकर सभी कार्यों को करना चाहिए। चाणक्य नीति के अनुसार जो व्यक्ति बगुले से यह एक गुण सीखकर एकाग्रता के साथ अपना कर्म करता है उसे तरक्की जरूर मिलती है।
मुर्गे से सीखें सतर्क रहना
आचार्य चाणक्य के मुताबिक सुबह जल्दी उठना, रण में कभी पीछे न हटना, अपने परिजनों से मिल-बांटकर खाना और आगे बढ़कर शत्रु से अपने भक्ष्य को छीन लेना, ये सभी गुण मनुष्य को मुर्गे से सीखने चाहिए। आचार्य चाणक्य ने मुर्गे के इन गुणों द्वारा व्यक्ति को ब्रह्ममुहूर्त में उठने, युद्ध में शत्रु का डटकर सामना करने और अपने बंधुओं से मिलकर रहने की सीख दी है।
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