यूं तो भोलेशंकर की पूजा में कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर आपके पास पूजन की कोई सामग्री न हो, तो भी आप शिवजी को केवल तीन पत्तियों वाला बेलपत्र चढ़ा कर खुश कर सकते हैं।
वहीं सावन के माह में भगवान को जलाभिषेक के समय बेलपत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है। बेलपत्र को संस्कृत में ‘बिल्वपत्र’ कहा जाता है। यह भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है। शास्त्रों के अनुसार बेलपत्र और जल से भगवान शंकर का मस्तिष्क शीतल रहता है।
पूजा में इनका प्रयोग करने से वे बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं। जी हां धर्मशास्त्रों के अनुसार भी भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार मान्यता है कि शिव की पूजा में कुछ भी न हो तो बस एक बेलपत्र ही काफी है। लेकिन सबकुछ हो और बेलपत्र न हो तो पूजा अधूरी रह जाती है। ऐसे में हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर शिव की पूजा में अर्पित किये जाने वाला तीन पत्तियों वाला बेलपत्र इतना महत्वपूर्ण क्यों है…
इस संबंध में पंडित शर्मा का कहना है कि एक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने जब विष पान किया था तो उनके गले में जलन हो रही थी। बिल्वपत्र के में विष निवारक गुण होते हैं इसलिए उन्हें बेलपत्र चढ़ाया गया, ताकि जहर का असर कम हो। मान्यता है कि तभी से भोलेनाथ को बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
वहीं एक अन्य कथा के अनुसार बेलपत्र की तीन पत्तियां भगवान शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक हैं। यानी शिव का ही रूप है इसलिए बेलपत्र को अत्यंत पवित्र माना जाता है।
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भोलेनाथ की पूजा में इन तीन पत्तियों यानि बेलपत्र का विशेष महत्व है। मान्यता के अनुसार यहां तक की महादेव एक बेलपत्र अर्पण करने से भी प्रसन्न हो जाते है, इसलिए उन्हें ‘आशुतोष’ भी कहा जाता है।
बेलपत्र में एक साथ तीन पत्तियां जुड़ी रहती हैं। इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। वैसे तो बेलपत्र की महिमा का वर्णन कई पुराणों में मिलता है। लेकिन शिवपुराण में इसकी महिमा विस्तार से बताई गयी है।
शिवपुराण में कहा गया है कि बेलपत्र भगवान शिव का प्रतीक है। भगवान स्वयं इसकी महिमा स्वीकारते हैं। मान्यता है कि जो भी बेल वृक्ष की जड़ के पास शिवलिंग रखकर भोले की पूजा करते हैं। वे हमेशा सुखी रहते हैं। उनके परिवार पर कभी कोई कष्ट नहीं आता।
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वहीं बेलवृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में स्कंद पुराण में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका। जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं। मान्यता है उन्हीं बूंदों से ही बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ।
बेलवृक्ष में इन देवियों का है वास!
इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तने में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं। कहा जाता है कि बेल वृक्ष के कांटों में भी कई शक्तियां समाहित हैं। मान्यता यह भी है कि इसमें देवी महालक्ष्मी का भी वास है। जो श्रद्धालु शिव-पार्वती की पूजा में बेलपत्र अर्पित करते हैं। उन्हें भोलेनाथ और माता पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है।
ऐसे करें : भोलेनाथ को बेलपत्र अर्पित
भोलेनाथ को बेलपत्र अर्पित करते समय पौराणिक मंत्र ‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥’ का उच्चारण करें।
अर्थात : तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पाप को संहार करने वाले हे शिवजी आपको त्रिदल बिल्व पत्र अर्पित करता हूं। रुद्राष्टाध्यायी के इस मंत्र को बोलकर बेलपत्र चढ़ाने का विशेष महत्त्व एवं फल है।
: भगवान शिव की तस्वीर या शिवलिंग में हमेशा उल्टा बेलपत्र रखना चाहिए। यानी चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहना चाहिए।
: भगवान शिव को ऐसा बेलपत्र अर्पण करें जो बिल्कुल भी कटा फटा न हो।
: बेलपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं। ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं।
: शिवलिंग पर दूसरे के द्वारा चढ़ाए गए बेलपत्र का अनादर नहीं करना चाहिए।
बेलपत्र से जुड़े कुछ नियम…
जानकारों के अनुसार बेलपत्र को तोड़ते समय भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए। इसके अलावा इस बात का भी ख्याल रखें कि कभी भी चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथि पर बेलपत्र न तोड़ें। साथ ही तिथियों के संक्रांति काल और सोमवार को भी बेल पत्र नहीं तोड़ना चाहिए।
: बेलपत्र को कभी भी टहनी के साथ नहीं तोड़ना चाहिए। इसे चढ़ाते समय तीन पत्तियों की डंठल को तोड़कर ही भोलेनाथ को अर्पित करना चाहिए।
: स्कंद पुराण के अनुसार अगर नया बेल पत्र नहीं मिल सके तो किसी दूसरे के चढ़ाए हुए बेलपत्र को भी धोकर आप चढ़ा सकते हैं। इससे किसी भी तरह का पाप नहीं लगेगा।