अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार एक सुमंत नामक ब्राह्मण था। उसका विवाह महर्षि भृगु की पुत्री दीक्षा से हुआ था। जब सुमंत और दीक्षा की पुत्री हुई तो उन्होंने उसका नाम सुशीला रखा। परंतु सुमंत की पत्नी दीक्षा की असमय मृत्यु होने पर ब्राह्मण ने एक कर्कशा नाम की कन्या से शादी कर ली। फिर सुशीला का विवाह कौण्डिन्य मुनि से हो गया। कर्कशा के अत्यंत क्रोधी स्वभाव और बुरे कर्मों के कारण सुशीला बहुत निर्धन हो गई।
फिर एक दिन जब सुशीला अपने पति के साथ कहीं जा रही थी तो मार्ग में उन दोनों को कुछ महिलाएं एक नदी पर व्रत करते हुए दिखीं। सुशीला ने पास जाकर जब उन महिलाओं से पास जाकर पूछा तो पता चला कि वे स्त्रियां अनंत चतुर्दशी का व्रत कर रही थीं। महिलाओं को विधिपूर्वक व्रत करते देख सुशीला ने भी भगवान को अनंतसूत्र बांध दिया। तब भगवान अनंत की कृपा से उन दोनों पति-पत्नी के सभी कष्ट दूर हो गए और उनके जीवन में खुशियां भर गईं।
लेकिन एक बार क्रोध में आकर सुशीला के पति कौण्डिन्य मुनि ने उस अनंतसूत्र को तोड़ दिया जिससे भगवान के रुष्ट हो गए। इस कारण फिर से सुशीला और उसके पति के जीवन में कष्टों का अंबार लग गया। तब सुशीला ने भगवान से क्षमा मांगी कि वह उसके जीवन के सभी कष्टों को समाप्त कर दें। तब अनंत देव सुशीला के विनय को सुनकर प्रसन्न हुए और फिर से अपनी कृपा उन पर बरसाई। मान्यता है कि तभी से यह व्रत रखा जाता है और इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा कर अनंतसूत्र बांधने से ईश्वर की कृपा से जीवन में सभी कष्ट दूर होकर सुख-समृद्धि का वास होता है।
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