स्थानीय लोगों के बीच यह बात मशहूर थी कि ये चमत्कारी साधु हैं। साधुओं के मन में यह भाव था कि वे सिद्ध साधु हैं इसलिए वे आम लोगों से अच्छा बर्ताव नहीं करते थे।
गुरु नानक देवजी ने जब देखा कि ये लोग तो नशे में चूर हैं। जो खुद होश में नहीं है वह खुदा में मन कैसे लगा सकता है? नशा तो नाश की जड़ है। फिर ये लोग लोगों को सद्मार्ग का उपदेश कैसे दे सकते हैं?
गुरुदेव ने वहां एक पेड़ के नीचे आसन जमाया। सर्दी ज्यादा थी, इसलिए भाई मरदाना ने कुछ लकड़ियां इकट्ठी कर लीं। लकड़ियां जलाने के लिए आग की जरूरत थी। इसलिए मरदाना साधुओं के डेर में गए ताकि वहां से आग ले आएं, लेकिन साधुओं ने उन्हें आग नहीं दी।
मरदाना लौट आए और पूरी बात गुरुदेव से कही। आपने फरमाया – पत्थरों से आग जला लो। मरदाना ने वैसा ही किया और आग जल गई। थोड़ी देर बाद आकाश में बादल छा गए। बिजली चमकने लगी और बारिश शुरू हो गई।
यह सुनकर वे साधु लज्जित हुए और अपने रवैए के लिए माफी मांगने लगे। नानक देवजी का नाम जितना बड़ा था, उनका दिल भी उतना ही बड़ा था। उन्होंने सबको माफ कर दिया और बोले, परमात्मा की अनुभूति चाहते हो तो सबसे पहले नशा करना छोड़ दो। नशा इंसान को नाश की ओर लेकर जाता है। नशे के साथ ही अहंकार भी छोड़ दो। अपनी दौलत, सिद्धि, तपस्या और यहां तक कि त्याग का भी अहंकार पतन का कारण बनता है।
नानक देव के अनमोल वचन सुनकर साधुओं की आंखें खुल गईं। उन्होंने कहा, हम ऐसा ही करेंगे। दूसरे दिन गुरुदेव और भाई मरदाना अपनी राह चल दिए, ताकि किसी और का उद्धार कर सकें।