कमंडल छोड़ा, नर्मदा स्वयं पहुंच गईं
लोक मान्यताओं के अनुसार जबलपुर जिले के खमरिया क्षेत्र स्थित मटामर गांव में भगवान परशुराम ने तपस्या की थी। वे प्रतिदिन प्रात:काल नर्मदा स्नान के लिए जाते थे। एक दिन वे रेवा स्नान कर रहे थे, तभी मां नर्मदा ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि भगवन आपको स्नान के लिए इतनी दूर तट आने की आवश्यकता नहीं है। आप अपना कमंडल यहा छोड़ जाइये मैं आपकी तपोस्थली में बने कुंड में स्वयं अवतरित हो जाऊंगी। दूसरे दिन भगवान परशुराम जब कुंड के समीप गए तो उन्हें वह कमंडल कुंड में मिला। तब से इस कुंड का नाम परशराुम कुंड पड़ गया। आज भी यह मान्यता है कि कुंड का जल नर्मदा जल के समान है, क्योंकि मां नर्मदा स्वयं इसमें वास करती हैं।
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परशुराम जयंती की तैयारियों में जुटीं ब्राम्हण समाज की अलका गर्ग ने बताया परशुराम कुंड से कुछ दूरी पर देवी टोरिया (पहाड़ी) है। भगवान परशुराम की यह तपोस्थली है। पहाड़ी में पत्थरों की बीच बनी गुफा में रखी परशुराम की पुरातत्व कालीन मूर्ति सहित अन्य अवशेष इसकी प्रमाणिकता को सिद्ध करते हैं। पहाड़ी के पास ही बना झालखंडन माता का मंदिर अपनी ऐतिहासिक कहानी बयां करता है। ग्राम मटामर वासियों का कहना है कि आज भी माता के मंदिर में बाघ आमद देता है।
पिकनिक के लिए भी बेहतर स्थान
जनपद पंचायत मटामर के संतोष मिश्रा का कहना है कि यह स्थान आस्था के साथ ही साथ पर्यटन के लिए भी विकसित किया जा सकता है। पंचायत में ऐसा कोई बजट नहीं है, जिससे परशुराम कुंड का जीर्णोद्धार किया जा सके, इसके लिए जनप्रतिनिधियों के समक्ष प्रस्ताव रखा गया है।