कार्तिक पूर्णिमा का दिन बेहद शुभ माना जाता है। यही कारण है कि नए व्यवसाय, शिलान्यास, मांगलिक कार्यों आदि की शुरुआत के लिए भी यह बहुत अच्छा मुहूर्त माना जाता है। हिन्दू धर्मग्रंथों में इस दिन को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से उल्लेखित किया गया है। राक्षस त्रिपुरासुर का वध का दिन होने से इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा या त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली भी कहा जाता है। इससे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। कथा के अनुसार दानव त्रिपुरासुर ने देवताओं को परेशान कर रखा था। तब भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा पर त्रिपुरासुर का वध किया था। त्रिपुरासुर की मृत्यु और उसके आतंक से मुक्ति मिल जाने की खुशी में देवताओं देवताओं ने स्वर्ग में दीये जलाए थे। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन को देव दिवाली भी कहा जाता है।
इस बार कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि दो दिन रहेगी। पूर्णिमा 26 नवंबर को मध्यान्ह 3 बजकर 58 मिनट से प्रारंभ होगी। 27 नवंबर को मध्यान्ह 2 बजकर 40 मिनट पर यह समाप्त होगी।
पंडित और विद्वान बताते हैं कि उदया तिथि के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा का व्रत 27 नवंबर को यानि सोमवार के दिन रखा जाना चाहिए। सोमवार को ही सुबह पूर्णिमा का पावन स्नान और पूजन—दान किया जाना चाहिए। चूंकि पूर्णिमा तिथि की रात 26 नवंबर को होगी, इसलिए चंद्र और लक्ष्मी पूजन 26 नवंबर को किया जाना भी बहुत फलदायक साबित होगा। 26 नवंबर की रात को ही दीपदान किया जा सकता है। सत्यनारायण भगवान की कथा दोनों दिन शाम को की जा सकती है।