मंदिर में क्यों बजाई जाती है घंटी?
पुराणों में इस बात का जिक्र मिलता है कि घंटी को इस सृष्टि के निर्माण के समय जो आवाज गूंजी थी, उसका ही प्रतीक माना जाता है। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंदिर में प्रवेश करते ही घंटी बजाने से आप ईश्वर के समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज करते हैं। पूजा और आरती के दौरान घंटी की ध्वनि से देवी-देवताओं में चेतना आती है जिससे आपकी आपकी पूजा और प्रभावी तथा फलदायी होती है। इसके अलावा, ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक घंटी के नाद से आपके मन में भी आध्यात्मिक भाव पैदा होते हैं और मानसिक शांति मिलती है। ग्रंथों की मानें तो पूजा के दौरान घंटी बजाने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसलिए पूजा के अलावा किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य की शुरुआत में घंटी बजाना शुभ माना जाता है।
घंटियों के प्रकार-
1. द्वार घंटी: इन घंटियों का प्रयोग आमातौर पर मंदिरों के द्वार पर किया जाता है। इनका आकार छोटा या बड़ा दोनों तरह का हो सकता है। इसलिए इन्हें घर के मंदिर में भी लगा सकते हैं।
2. घंटा: इसका आकार बड़ा होने की वजह से इसकी ध्वनि काफी दूर तक जा सकती है।
3. गरुड़ घंटी: इनका आकार छोटा होने के कारण ये हाथ में आसानी से पकड़ी जा सकती हैं। आमतौर पर घर के मंदिरों में इनका उपयोग किया जाता है।
4. हाथ घंटी: घंटी के इस रूप में गोल आकार की पीतल धातु की तस्तरी को लकड़ी की डंडी से पीटकर ध्वनि उत्पन्न की जाती है।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)
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