दरअसल कालसर्प योग को दो भागों में विभक्त किया गया है, प्रथम कालसर्प योग और दूसरा अर्ध चंद्र योग। वैसे तो कालसर्प योग मनुष्य की उन्नति में बाधक होता ही है और कष्ट के कारण पीड़ादायक एवं घातक भी होता है, जबकि अद्र्धचंद्र (कालसर्प योग) मनुष्य को सुख-समृद्धि, पदोन्नति, सुख, लाभ तथा अनेक प्रकार के लाभ देता है।
जानकारों के अनुसार जन्म कुंडली में द्वितीय, षष्ठम, अष्टम व द्वादश भाव में राहू-केतु स्थित हों और उनके एक ही ओर एक ही गोलाद्र्ध में सभी ग्रह स्थित हों तब कालसर्प योग या दोष का जन्म होता है।
वैसे तो कालसर्प योग वाले जातक का भाग्य उदय जीवन के उत्तराद्र्ध में ही होता है, परंतु इसके ठीक विपरीत जब किसी जातक की जन्म कुंडली में द्वितीय,षष्ठम, अष्टम एवं द्वादश भावों राहू, केतु होने की ग्रह स्थित दिखाई दे, तब यह योग कालसर्प योग न होकर अद्र्धचंद्र नाम का अमृत योग बन जाता है।
ऐसी स्थिति में यह योग कालसर्प दोष न होकर अद्र्धचंद्र नाम का अमृत योग बन जाता है। यह योग जातक को अचानक ऐसी सफलता देता है जिसकी जातक ने कभी कल्पना भी नहीं की हो। यह योग जातक को हर प्रकार की सफलता प्रदान करता है। पूर्व में भी ऐसे अनेक उदाहरण और नाम मिल जाते हैं, जिन्होंने कालसर्प दोष होते हुए भी सफलता के शिखर को छुआ। आइए ऐसे कुछ दुर्लभ योग वाले दुर्लभ व्यक्तियों को देखते हैं।
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में व्यवसाय, कला, साहित्य, क्रीड़ा, फिल्म उद्योग, राजनीति एवं अध्यात्म के चरमोत्कर्ष पर इस योग वाले जातक पहुंचे हैं। प्रथम भाव से द्वादश भाव तक बनने वाले अनंत कालसर्प योग से शेषनाग काल सर्प योग तक वाले जातकों में विश्व क्षितिज के श्रेष्ठतम महामानव शामिल हैं : गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, आचार्य रजनीश आदि को शिखर पर स्थापित किया है। वहीं अकबर, शाहजहां, सम्राट हर्षवर्धन, पूर्व शासक जीवाजीराव सिंधिया, महारानी एलिजाबेथ,महारानी विक्टोरिया, एडवर्ड सप्तम आदि को जनप्रिय शहंशाह अथवा राजा बनाया।
पं. जवाहर लाल नेहरू, अब्राहम लिंकन, माग्रेट थैचर, सरदार पटेल, मोरारजी देसाई, गुलजारी लाल नंदा, चंद्रशेखर, सिरिमाओ भंडारनायके,नेलसन मंडेला आदि को इस योग ने राजनीति के शिखर पर स्थापित किया। सचिन तेंदुलकर, अमृता प्रीतम, मधुबाला, रेखा,लता मंगेशकर, धीरू भाई अम्बानी, सत्यजीत रे, ऋषिकेश मुखर्जी आदि अनेक लोगों को इस योग ने अपने-अपने क्षेत्र में उच्चस्थ स्थान दिलवाया।
ज्योतिष के अनुसार वास्तव में राहू एवं केतु कई ग्रहीय पिंड न होकर छाया ग्रह हैं। हर कोई जानता है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा कर रही है और चंद्रमा पृथ्वी की। पृथ्वी के परिभ्रमण वृत्त के दो बिंदू परस्पर विपरीत दिशा में पड़ते हैं। इन्हीं काट बिंदुओं (छायाओं) को राहू और केतु नाम दिया गया है। चूंकि इस सौर मंडलीय घटना का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है, इसलिए ज्योतिषीय गणना में इसे स्थान देकर कुंडली में अन्य ग्रहों के समकक्ष रखा जाता है।
राहू क्रूर ग्रह है। इसे शनि के तुल्य गुणों वाला माना गया है। शनि के समान इस ग्रह में भी आध्यात्मिक, राजनीतिक चिंतन, दीर्घ विचार, ऊंच-नीच सोचकर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है। राहू मिथुन राशि में उच्च और धनु राशि में नीच का होता है। कन्या इसकी मित्र राशि है। वहीं केतु इसके विपरीत धनु में उच्च और मिथुन राशि में नीच का होता है।
केतु मंगल के गुणों वाला परंतु अपेक्षाकृत सौम्य ग्रह है। शनि, बुध व शुक्र राहू के मित्र और सूर्य, चंद्र, मंगल, शत्रु जबकि गुरु सम है। वहीं शुक्र व मंगल केतु के मित्र सूर्य, शनि, राहू शत्रु और चंद्र, बुध, गुरु सम ग्रह हैं। परंतु व्यावहारिक रूप से देखने में आता है कि राहू की अनुकूल स्थिति के कारण कालसर्प योग जातक को अप्रत्याशित प्रगति की ओर अग्रसर करता है।
कालसर्प योग जातक में जीवटता, संघर्षशीलता और अन्याय के प्रति लड़ने के लिए अदम्य साहस का सृजन करता है। कालसर्प के कारण ऐसे जाताक कभी संतुष्ट नहीं हो पाते हैं। जिसके चलते ऐसे जातक अपने ध्येय की सिद्धि के लिए अद्भुत संघर्षशक्ति पाकर उसका दोहन कर सफल होते हैंऔर लोकप्रियता प्राप्त करते हैं। आध्यात्मिक महापुरुषों एवं राजनीतिज्ञों को यह योग अत्यंत रास आता है। राजयोग भी यह प्रदान करता है।