धर्म और अध्यात्म

Swami Dayanand Saraswati: जानें स्वामी दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार, ऐसे किया मार्गदर्शन

इस देश के अंधेरों में ज्ञान की मशाल जलाने वाले आधुनिक भारत के मनीषियों में स्वामी दयानंद सरस्वती (religious views of Swami Dayanand) भी हैं। इनकी वेदों में दृढ़ निष्ठा थी, जिसके प्रचार-प्रसार के लिए इन्होंने मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। जिसका भारतीय समाज पर बड़ा असर पड़ा, देश को कई सामाजिक बुराइयों से मुक्त होने में बड़ी मदद की। ऐसे मनीषी की जयंती (Swami Dayanand Saraswati Jayanti) पर देश उनको नमन कर रहा है। आइये जानते हैं कि महर्षि दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचारों के बारे में…

Feb 13, 2023 / 03:13 pm

Pravin Pandey

religious views of Swami Dayanand

Swami Dayanand Saraswati Jayanti (स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी): आधुनिक भारत के चिंतक मूलशंकर यानी महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म राजकोट (गुजरात) के टंकारा में 12 फरवरी 1824 को फाल्गुन कृष्ण दशमी के दिन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। हिंदू कैलेंडर के हिसाब से इस साल फाल्गुन कृष्ण दशमी 15 फरवरी को है, इसलिए इस दिन भी कई आयोजन किए जाएंगे।

मूलशंकर ऐसे बने महर्षिः कहा जाता है कि मूलशंकर शिव के परम भक्त थे, उन्होंने वेद, शास्त्र, धार्मिक पुस्तकों का गहन अध्ययन किया था। एक बार उनके पिता ने मूलशंकर को महाशिवरात्रि व्रत रखने के लिए कहा। इसी समय शिव मंदिर में उन्होंने चूहों का उत्पात देखा, तो उनके मन में यह विचार आया कि यह वह शिव नहीं है, जिनकी कथा उन्हें सुनाई गई है। इसके बाद उन्हें सच्चे शिव को पाने की जिज्ञासा उठी।

इधर, छोटे बहन और चाचा की हैजे से मौत के बाद वे जीवन-मृत्यु के अर्थ पर सोचने लगे, उनकी दिशा से चिंतित पिता ने उनकी विवाह का फैसला लिया। लेकिन उन्होंने तय किया कि विवाह उनके लिए नहीं बना है, और आखिर में 1846 में वे शिवरात्रि के दिन सत्य की खोज में निकल पड़े। यात्रा करते हुए गुरु विरजानंद के पास पहुंचे, उन्होंने इन्हें पाणिनी व्याकरण, पातंजलि योग सूत्र,वेद वेदांग का अध्ययन कराया। गुरु विरजानंद ने मत मतांतरों की अविद्या मिटाने, परोपकार करने, वैदिक धर्म का आलोक फैलाने आदि की गुरु दक्षिणा मांगी।

बाद में यात्रा करते हुए हरिद्वार कुंभ में पाखंड खंडिनी पताका फहराई। अनेक शास्त्रार्थ किए। बाद में मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। समाज सुधार में जुट गए और बुद्धिवाद की मशाल जलाई। सत्यार्थ प्रकाश लिखा, अंध विश्वासों से समाज को दूर करने का प्रयास किया। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। वे सामाजिक पुनर्गठन में सभी वर्ण और स्त्रियों की भागीदारी के समर्थक थे। उन्होंने अश्पृश्यता, बाल विवाह, अंध विश्वास, पाखंड का विरोध किया। 30 अक्टूबर 1883 को इनका निधन हो गया।

ये भी पढ़ेंः महाशिवरात्रि पर भूलकर भी न तोड़ें बेलपत्र, जानें बेल पत्र को तोडऩे से लेकर शिवजी को चढ़ाने के नियम

स्वामी दयानंद सरस्वती के प्रमुख विचार (religious views of Swami Dayanand)
1. स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था कृण्वंतो विश्वमार्यम अर्थात सारे संसार को श्रेष्ठ बनाओ, यह सिद्धांत वसुधैव कुटुंबकम् का ही अगला चरण जान पड़ता है।
2. स्वामी दयानंद सरस्वती के अंतिम शब्द थे, प्रभु तूने अच्छी लीला की, आपकी इच्छा पूर्ण हो।
3. स्वामी दयानंद सरस्वती ने एकेश्वरवाद का प्रचार किया, उन्होंने कहा कि वेदों में ईश्वर को एक ही बताया गया है। निराकार स्वरूप में उनकी दृढ़ आस्था थी। उन्होंने कहा था कि सृष्टि की उत्पत्ति के तीन कारण हैं, ईश्वर, जीव और प्रकृति, ये तीनों अनादि और अनंत हैं। ये तीनों सत्य हैं।


4. स्वामी दयानंद सरस्वती ने मूर्ति पूजा का विरोध किया था, कहा था कि यह वेद विरूद्ध और अप्रमाणिक है। उन्होंने वेदों की ओर लौटो का नारा भी दिया था।
5. स्वामी दयानंद ने सार्व भौमिक धर्म की धारणा पर बल दिया था। इसे उन्होंने सनातन नित्य धर्म कहा था।

Hindi News / Astrology and Spirituality / Religion and Spirituality / Swami Dayanand Saraswati: जानें स्वामी दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार, ऐसे किया मार्गदर्शन

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.