क्यों खास है वैशाख स्कंद षष्ठी वैशाख महीना भगवान शिव की पूजा के लिए सावन और कार्तिक महीने की तरह ही शुभ माना जाता है। वहीं मंगलवार 25 अप्रैल को देवी भगवती और हनुमानजी की पूजा का भी दिन है। इसी दिन देवी भगवती स्वरूपा माता पार्वती के पुत्र भगवान स्कंद की पूजा का दिन पड़ रहा है। वहीं हनुमानजी भी रुद्रावतार यानी भगवान शिव के अवतार हैं, यानी कि एक ही दिन भगवान स्कंद और उनके माता-पिता के स्वरूपों की पूजा का दिन है। इसलिए यह तिथि बेहद खास हो गई है।
स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व स्कंद षष्ठी व्रत भगवान शिव के बड़े पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए समर्पित है। मान्यता है कि इनकी पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है और रोग शोक का नाश होता है। कार्तिकेय देव सेनापति भी हैं। इनका व्रत लोभ, क्रोध, मोह, अहंकार और काम जैसी बुराइयों पर विजय दिलाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार स्वामी कार्तिकेय ने इसी दिन तरकासुर नाम के राक्षस का वध किया था। इसलिए इस दिन कार्तिकेय पूजा शुभफलदायी होती है।
इसी दिन भगवान विष्णु ने नारदजी का उद्धार किया था, उन्हें लोभ से मुक्ति दिलाई थी। इसलिए इस दिन भगवान कार्तिकेय के साथ विष्णुजी की पूजा भी की जाती है। इस दिन व्रत से निःसंतान दंपति को संतान और सफलता सुख समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। निर्धनता दूर होती है और धन ऐश्वर्य मिलता है। इस दिन ब्राह्णणों को भोजन कराना चाहिए और स्नान के बाद कंबल और गर्म कपड़ों का दान करना चाहिए।
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कैसे रखें व्रत
1. सुबह उठकर घर की साफ-सफाई करें।
2. स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लें।
3. भगवान कार्तिकेय के साथ शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। दक्षिण दिशा में मुंह करके भगवान कार्तिकेय की पूजा करें।
4. पूजन में घी, दही, जल पुष्प अर्घ्य प्रदान कर अक्षत हल्दी चंदन इत्र से पूजन करें।
5. देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव, कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तुते मंत्र का जाप करें।
6. मौसमी फल पुष्प मेवा चढ़ाएं, भगवान कार्तिकेय से गलती के लिए क्षमा मांगे और पूरे दिन व्रत रखें।
7. शाम को फिर पूजा करें, भजन, कीर्तन, आरती के बाद फलाहार करें।
8. रात में भूमि पर शयन करें और ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात मंत्र का जाप करें।