इसके अलावा शनि देव को उनकी पत्नी के श्राप के कारण क्रूर भी माना जाता है। ज्योतिष में भी शनि को अशुभ ग्रह माना जाता है। वहीं ये भी माना गया है कि शनि देव जिस किसी पर प्रसन्न हो जाते हैं उसे समस्त दुखों से मुक्त कर दुनिया के सभी सुख प्रदान करते हैं। वहीं यदि यह किसी से नाराज हो जाएं तो उसे राजा से रंक भी बना देते है।
शनि देव के गुरु
न्याय का देवता यानि न्यायाधीश का पद शनि देव को प्राप्त है, उन्हें यह पद अपने गुरु भगवान शिव से प्राप्त हुआ था। शनि देव भगवान शिव और कृष्ण के अनन्य भक्त हैं। ऐसे में भगवान शिव ने ही शनि देव की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें न्याय के देवता का पद प्रदान करते हुए उन्हें अपना शिष्य बनाया।
शनि देव के 108 नाम अर्थ सहित
1. शनैश्चर- धीरे-धीरे चलने वाला।
2. शांत- जो शांत रहने वाला है।
3. सर्वाभीष्टप्रदायिन्- सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला।
4. शरण्य- जो रक्षा करने वाला है।
5. वरेण्य- जो सबसे उत्कृष्ट है।
6. सर्वेश- सारे जगत के देवता
7. सौम्य- नरम स्वभाव वाले देवता
8. सुरवन्द्य- सबसे पूजनीय देवता
9. सुरलोकविहारिण्- सुरह्स की दुनिया में भटकने वाले
10. सुखासनोपविष्ट- घात लगा के बैठने वाले देवता
11. सुन्दर- बहुत ही सुंदर देव
12. घन- बहुत मजबूत देव
13. घनरूप- कठोर रूप वाले देव
14. घनाभरणधारिण्- लोहे के आभूषण पहनने वाले देव
15. घनसारविलेप- कपूर के साथ अभिषेक करने वाले देव
16. खद्योत- आकाश की रोशनी
17. मंद- धीमी गति वाले देव
18. मंदचेष्ट- धीरे से घूमने वाले देव
19. महनीयगुणात्मन्- शानदार गुणों वाला देवता
20. मर्त्यपावनपद- वह देव जिनके चरण पूजनीय हो
21. महेश- देवो के देव
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22. छायापुत्र- छाया का बेटा
23. शर्व- पीड़ा देना वाला
24. शततूणीरधारिण्- सौ तीरों को धारण करने वाले देव
25. चरस्थिरस्वभाव- बराबर या व्यवस्थित रूप से चलने वाले
26. अचञ्चल- कभी ना हिलने वाले देव
27. नीलवर्ण- नीले रंग वाले
28. नित्य- अनंत एक काल तक रहने वाले देव
29. नीलाञ्जननिभ- नीला रोगन में दिखने वाले
30. नीलाम्बरविभूषण- नीले परिधान में सजने वाले
31. निश्चल- अटल रहने वाले देव
32. वैद्य- सब कुछ जानने वाले देव
33. विधिरूप- जो पवित्र उपदेश देने वाले है।
34. विरोधाधारभूमि- जमीन की बाधाओं का समर्थन करने वाले
35. भेदास्पद स्वभाव- प्रकृति का पृथक्करण करने वाला देवता
36. वज्रदेह- वज्र के शरीर वाला देव
37. वैराग्यद- जो वैराग्य के दाता है
38. वीर- अधिक शक्तिशाली देव
39. वीतरोगभय- डर और रोगों से मुक्त रहने वाले देव
40. विपत्परम्परेश- जो दुर्भाग्य के देवता है।
41. विश्ववंद्य- सबके द्वारा पूजे जाने वाले देव
42. गृध्नवाह- गिद्ध की सवारी करने वाले देव
43. गूढ़- छुपा हुआ
44. कूर्मांग- कछुए जैसे शरीर वाले देव
45. कुरूपिण्- असाधारण रूप वाले देव
46. कुत्सित- तुच्छ रूप वाले देव
47. गुणाढ्य- भरपूर गुणों वाले देव
48. गोचर- जो हर क्षेत्र पर नजर रखने वाले है।
49. अविद्यामूलनाश- अनदेखा करने वालों का नाश करने वाले
50. विद्याविद्यास्वरूपिण्- ज्ञान करने वाले और अनदेखा करने वाले देव
51. आयुष्यकारण- लंबा जीवन देने वाले देव
52. आपदुद्धर्त्र- दुर्भाग्य को दूर करने वाले देव
53. विष्णुभक्त- जो विष्णु के भक्त है।
54. वशिन्- स्वनियंत्रित करने वाले देव
55. विविधागमवेदिन्- कई शास्त्रों का ज्ञान रखने वाले
56. विधिस्तुत्य- पवित्र मन से पूजे जाने वाले
57. वंद्य- पूजनीय
58. विरुपाक्ष- कई नेत्रों वाले
59. वरिष्ठ- उत्कृष्ट
60. गरिष्ठ- जो आदरणीय है।
61. वज्रांगकुशधर- वज्र-अंकुश रखने वाले
62. वरदाभयहस्त- भय को दूर भगाने वाले
63. वामन- (बौना) छोटे कद वाले
64. ज्येष्ठापत्नीसमेत- जिसकी पत्नी ज्येष्ठ हो
65. श्रेष्ठ- सबसे उच्च
66. मितभाषिण्- कम बोलने वाले देव
67. कष्टौघनाशकर्त्र- कष्टों को दूर करने वाले
68. पुष्टिद- जो सौभाग्य के दाता है।
69. स्तुत्य- जो स्तुति करने योग्य है।
70. स्तोत्रगम्य- स्तुति के भजन के माध्यम से लाभ देने वाले
71. भक्तिवश्य- भक्ति द्वारा वश में आने वाले
72. भानु- तेजस्वी
73. भानुपुत्र- भानु के पुत्र
74. भव्य- आकर्षक
75. पावन- पवित्र
76. धनुर्मण्डलसंस्था- धनुमंडल में रहने वाले देवता
77. धनदा- जो धन के दाता है।
78. धनुष्मत्- विशेष आकार वाले
79. तनुप्रकाशदेह- तन को प्रकाश देने वाले देव
80. तामस- ताम गुण वाले देव
81. अशेषजनवंद्य- सभी सजीव द्वारा पूजनीय
82. विशेषफलदायिन्- विशेष फल देने वाले देव
83. वशीकृतजनेश- सभी मनुष्यों के देवता
84. पशूनांपति- जानवरों के देवता
85. खेचर- आसमान में घूमने वाले
86. घननीलांबर- गाढ़ा नीला वस्त्र पहनने वाले देव
87. काठिन्यमानस- निष्ठुर स्वभाव वाले देव
88. आर्यगणस्तुत्य- आर्य द्वारा पूजे जाने वाले
89. नीलच्छत्र- नीली छतरी वाले
90. नित्य- लगातार
91. निर्गुण- बिना गुण वाले
92. गुणात्मन्- गुणों से युक्त
93. निंद्य- निंदा करने वाले देव
94. वंदनीय- वंदना करने योग्य
95. धीर- दृढ़निश्चयी
96. दिव्यदेह- दिव्य शरीर वाले देव
97. दीनार्तिहरण- संकट दूर करने वाले देव
98. दैन्यनाशकराय- दुख का नाश करने वाले
99. आर्यजनगण्य- आर्य के लोग
100. क्रूर- कठोर स्वभाव वाले
101. क्रूरचेष्ट- कठोरता से दंड देने वाले
102. कामक्रोधकर- काम और क्रोध के दाता
103. कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारण- पत्नी और बेटे की दुश्मनी
104. परिपोषितभक्त- भक्तों द्वारा पोषित
105. परभीतिहर- डर को दूर करने वाले
106. भक्तसंघमनोऽभीष्टफलद- भक्तों के मन की इच्छा पूरी करने वाले
107. निरामय- रोग से दूर रहने वाले
108. शनि- शांत रहने वाले।
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सूर्य पुत्र शनिदेव की कथा
शनि देव को नौ ग्रहों में एक विशेष स्थान प्राप्त है। यूं तो सूर्यपुत्र शनिदेव के जन्म की कई कथाएँ प्रचलित हैं। लेकिन इनमें से एक कथा सबसे अधिक प्रचलित है, जिसका वर्णन स्कंद पुराण के काशीखंड में है। इस कथा के अनुसार भगवान सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या संज्ञा से हुआ था। सूर्यदेव को संज्ञा से तीन संतानों की प्राप्ति हुई जिनमें वैवस्त मनु, यमराज और यमुना थी। किंतु देवी संज्ञा सूर्यदेव का तेज सहन नहीं कर पा रही थी।
इसलिए देवी संज्ञा ने सूर्य भगवान के तेज को सहन करने की शक्ति प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करना प्रारंभ कर दिया अपनी तपस्या के फलस्वरूप उन्होंने अपनी ही प्रतिलिपि छाया का निर्माण किया और उन्हें सूर्यदेव की सेवा में भेज दिया। सूर्य देव और छाया के मिलन से तीन संतानें फिर से उत्पन्न हुई जिनका नाम था मनु, शनिदेव और भद्रा था।
जिनमें से शनिदेव के शरीर का रंग सूर्य के प्रकाश के कारण काला पड़ गया था और सूर्य देव शनिदेव को अपना पुत्र नहीं मानते थे, क्योंकि शनिदेव काले थे। शनिदेव की माता का अपमान होने से शनिदेव भगवान सूर्य अर्थात अपने पिता से हमेशा ही रुष्ट रहा करते थे और ऐसे में शनि देव ने भगवान शिव की कठोर तपस्या करनी प्रारंभ कर दी।
शनि देव की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शनिदेव से वर मांगने को कहा। शनिदेव ने कहा कि मेरे पिता मेरी माता का अपमान करते हैं। इसलिए आप मुझे मेरे पिता से अधिक शक्तिशाली और पूजनीय बना दीजिए। तब भगवान शिव ने शनिदेव को नवग्रहों में स्थान प्रदान किया। साथ ही उन्हें न्याय का देवता और अत्यंत शक्तिशाली बना दिया। जिस कारण सभी मनुष्यों के साथ ही सभी देवता, गंधर्व, नाग, असुर उनसे भयभीत रहते हुए उन्हें पूजनीय व वंदनीय मानने लगे।
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शनिदेव को श्राप
शनिदेव भगवान श्री कृष्ण के भी अनन्य भक्त थे। भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करते हुए शनि देव अपने आप को भी भूल जाते थे। शनि देव का विवाह चित्ररथ की पुत्री के साथ हुआ था। जो बड़ी ही रूपवती कन्या थी। एक समय उनकी पत्नी संतान की कामना के लिए ऋतू स्नान करने के पश्चात शनिदेव के पास आयी।
किंतु उस समय भगवान शनि देव भगवान श्री कृष्ण की आराधना कर रहे थे और उन्होंने अपनी पत्नी की ओर ध्यान नहीं दिया जिस कारण से शनि देव की पत्नी क्रुद्ध हो गई। और उन्होंने भगवान शनिदेव को श्राप दे दिया कि आपने मेरे तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया अत: मैं आपको श्राप देती हूं, कि आप जिसकी तरफ नजर उठा कर देखेंगे वह नष्ट हो जाएगा।
इसके बाद शनिदेव को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने अपनी पत्नी से क्षमा मांगी उनकी पत्नी को भी भूल का एहसास हुआ। किंतु उनकी पत्नी अपना श्राप वापस नहीं ले सकती थी, इस कारण से शनिदेव अपनी नजरें नीचे करके ही चलते हैं ताकि किसी का अनिष्ट ना हो जाए।
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शनि देव के मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
ॐ शं शनैश्चराय नमः।
शनि महामंत्र
ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
शनि का पौराणिक मंत्र
ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
शनि का वैदिक मंत्र
ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।शनि गायत्री मंत्र
ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।।
मान्यता के अनुसार शनिदेव के मंत्रों का जाप हर शनिवार को सुबह शुद्ध होकर उनकी प्रतिमा और मंदिर में उनके सामने कुश के आसान पर बैठकर उनको याद करके करना चाहिए, साथ ही उनकी प्रतिमा पर नीले फूल और तेल चढ़ाना चाहिए। माना जाता है कि उनके इन मंत्रों का जाप करने से शनिदेव प्रसन्न होते है। और अपने भक्तों को सभी मुसीबतों से दूर करके उन्हें सुख संपत्ति प्रदान करने के साथ ही प्रत्येक विपत्ति में उनकी रक्षा करते है।
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शनिचरा मंदिर मुरैना मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में शनिचरा नामक एक पौराणिक प्राचीनकालीन मंदिर है। जिसके चर्चे केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं, ऐसे में यहां भारत सहित विदेशों से भी लाखों श्रद्धालु आते हैं। जहां शनिदेव अपने इन भक्तों की मुराद पूरी करते है। यहां के प्राचीन मंदिर को देखकर लोग आश्चर्यचकित होने के साथ ही शनि महाराज के चमत्कारों को जानकार हैरान हो जाते हैं।
शनि महाराज का यह प्राचीन मंदिर मुरैना जिले के ग्राम ऐंती में पहाड़ियों के बीच स्थित है। यह मंदिर त्रेतायुग का माना जाता है। ऐतिहासिक और पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रावण की कैद से मुक्त होने के बाद हनुमान जी ने शनि महाराज को यही छोड़ा था, जिसके प्रमाण भी यहां मौजूद हैं।
दरअसल मान्यता है कि रावण की कैद में लंबे समय से रहने के कारण शनिदेव काफी कमजोर हो चुके थे। ऐसे में उन्हें छुड़ाने के पश्चात हनुमान जी ने शनि को तेज वेग से लंका से शनिदेव को उत्तर दिशा की ओर फेंका था। जिसके चलते वे यहां पर आकर गिरे,उनके गिरने से बना खड्डा आज भी देखने को मिलता है, वहीं वैज्ञानिक और पुरातत्व विभाग का खोज के पश्चात कहना है कि यह जो खड्डा है वह किसी उल्का पिंड के गिरने से हुआ है।
अमावस्या के दिन यहां विशेष मेले का आयोजन होता है और श्रद्धालु यहां शनिदेव के सामने अपने मन की मुरादें रखते हैं।