शिवलिंग और न्यूक्लियर रिएक्टर में काफी समानताएं हैं। दोनों की संरचनाएं भी एक सी हैं। अगर, दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों ही कहीं न कहीं उर्जा से संबंधित हैं। शिवलिंग पर लगातार जल प्रवाहित करने का नियम है। देश में, ज्यादातर शिवलिंग वहीं पाए जाते हैं जहां जल का भंडार हो, जैसे नदी, तालाब, झील इत्यादि। विश्व के सारे न्यूक्लियर प्लांट भी समुद्र के पास ही हैं।
शिवलिंग की संरचना बेलनाकार होती है और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की रिएक्टर की संरचना भी बेलनाकार ही है। न्यूक्लियर रिएक्टर को ठंडा रखने के लिये जो जल का इस्तेमाल किया जाता है उस जल को किसी और प्रयोग में नहीं लाया जाता। उसी तरह शिवलिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है उसको भी प्रसाद के रूप में ग्रहण नहीं किया जाता है।
शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है। जहां से जल निष्कासित हो रहा है, उसको लांघा भी नहीं जाता है। ऐसी मान्यता है कि वह जल आवेशित (चार्ज) होता है। उसी तरह से जिस तरह से न्यूक्लियर रिएक्टर से निकले हुए जल को भी दूर ऱखा जाता है।
शिवलिंग पर जल, बेलपत्र क्यों चढ़ाते हैं?
सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है। शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लिअर रिएक्टर्स ही हैं तभी उनपर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे। महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे बिल्वपत्र, आक, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं।
सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है। शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लिअर रिएक्टर्स ही हैं तभी उनपर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे। महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे बिल्वपत्र, आक, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं।
क्योंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है तभी जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता। भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह है। शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है।
स्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जैसा की आप उपरोक्त चित्र में देख सकते हैं। जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस शिवलिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके। पुराणो में कहा गया है कि प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है।