सोलह शृंगार की बात हो, तो खनखनाती चूडिय़ों का जिक्र कैसे न किया जाए। रंग-बिरंगी ये चूडिय़ां एक सुहागन के लिए शृंगार का अहम हिस्सा मानी जाती हैं। लेकिन क्या आप जानती हैं, चूडिय़ां न केवल शृंगार का साधन मात्र हैं, बल्कि इनके धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी हैं। चूडिय़ां पहनने की परंपरा आज से नहीं बल्कि वैदिक युग से ही रही है। इसका प्रमाण हिंदू देवियों की मूर्तियों में भी देखने को मिलता है कि प्रतिमाओं के हाथों में चूडिय़ां स्पष्ट नजर आती हैं। पत्रिका.कॉम इस लेख में आपको बता रहा है चूडिय़ों का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व…
चूडिय़ों को सुहाग का प्रतीक माना जाता हैं। लेकिन चूडिय़ां केवल सुहाग का प्रतीक य 16 शृंगार का ही प्रतीक नहीं हैं, बल्कि धार्मिक के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी ये खास हैं। चूडिय़ों की खनखन से जहां कई बाधाएं दूर होती हैं, वैवाहिक जीवन में प्यार बढ़ता है। वहीं विज्ञान में भी इनके महत्व को माना गया है।
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– लड़कियां और महिलाएं दोनों ही हाथों में चूडिय़ां पहनती हैं। लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से महिलाओं का हाथों में चूडिय़ां पहनना जरूरी माना गया है।
– माना जाता है कि सुहागिन महिलाएं चूड़ी पहनती हैं, तो पति की आयु बढ़ती है।
– यही कारण है कि देवी दुर्गा को भी जब शृंगार का सामान चढ़ाया जाता है, तो उसमें चूडिय़ों का स्थान महत्वपूर्ण है।
– वहीं ज्योतिष के अनुसार हरी चूडिय़ों के दान से बुध देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
– हरी चूडिय़ों के दान से सुहागिन महिलाओं को पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं वास्तु शास्त्र के अनुसार खनकती चूडिय़ों की आवाज घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं।
– विज्ञान भी चूडिय़ों का महत्व मानता है।
– विज्ञान कहता है कि जो महिलाएं हाथों में चूडिय़ां पहनती हैं, उनका स्वास्थ बेहतर बना रहता है।
– दरअसल चूड़ी पहनने से सांस और दिल से जुड़ी बीमारियां कम होती हैं।
– चूड़ी पहनने से मानसिक संतुलन ठीक रहता है।
– इनके प्रयोग से महिलाओं को कम थकान महसूस होती है।
– विज्ञान के मुताबिक कलाई से नीचे से लेकर 6 इंच तक एक्यूप्रेशर पॉइंट्स होते हैं। इन पर चूडिय़ों से पडऩे वाला दबाव शरीर को स्वस्थ बनाए रखता है।
– ऐसे में हाथों में चूडिय़ां पहनने से महिलाएं ऊर्जावान और खुश बनी रहती हैं।