अपरा या अचला एकादशी व्रत कथा
एक बार की बात है महीध्वज नाम का एक राजा था जो बहुत धार्मिक था। परंतु महीध्वज राजा का छोटा भाई वज्रध्वज उससे बहुत ईर्ष्या करता था। द्वेष में आकर एक दिन मौका मिलते ही वज्रध्वज ने अपने बड़े भाई महीध्वज को मारकर उसे जंगल में एक पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दिया। लेकिन अकाल मृत्यु की वजह से राजा को मुक्ति नहीं मिली और उसकी आत्मा पीपल के वृक्ष पर ही मंडराने लगी।
महीध्वज राजा की आत्मा वहां से आने जाने वाले लोगों को सताने लगी। तब एक दिन वहां से एक ऋषि गुजरे और राजा की आत्मा को देखने के साथ ही ऋषि ने अपनी शक्तियों द्वारा उसके प्रेत बनने की वजह भी जान ली।
तब ऋषि ने राजा की प्रेत आत्मा को पीपल के वृक्ष से नीचे उतारकर परलोक विद्या का ज्ञान दिया। तत्पश्चात राजा महीध्वज को इस प्रेत योनि से छुटकारा दिलाने के लिए ऋषि ने खुद अपरा यानी अचला एकादशी का व्रत रखा। फिर अगले दिन द्वादशी को व्रत संपूर्ण होने पर व्रत का सारा पुण्य फल महीध्वज की प्रेतात्मा को दिया। अपरा एकादशी के व्रत का पुण्य फल प्राप्त होते ही राजा महीध्वज की प्रेत आत्मा को मुक्ति मिल गई और वह स्वर्गलोक में गमन कर गई।
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