1. 1993 में नासा ने कुछ चित्र जारी किया था। ये चित्र भारत के दक्षिणी हिस्से में धनुष कोटि और श्रीलंका के पंबन के बीच 48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे भूभाग का था। इस पुल जैसे भूभाग को ही रामसेतु कहा जाता है, जिस पर राजनीतिक विवाद भी हुआ था। इसके 22 साल बाद आईएसएस 1 ए ने रामेश्वरम और जाफना द्वीप के बीच समुद्र के भीतर भूभाग का पता लगया और उसका चित्र लिया। इससे पहले के चित्रों की पुष्टि हुई।
2. 1917 में एक अमेरिकी टीवी शो एनशिएंट लैंड ब्रिज में एक अमेरिकी पुरातत्वविद ने कहा कि भगवान के श्रीलंका तक सेतु बनाने की पौराणिक कथा सच हो सकती है। दोनों देशों के बीच 50 किलोमीटर लंबी एक रेखा चट्टानों से बनी है। ये चट्टानें सात हजार साल पुरानी हैं, जबकि जिस बालू पर ये चट्टानें टिकी हैं। वे चार हजार साल ही पुरानी है, इससे लगता है कि यह सेतु मानव निर्मित है।
3. कई अन्य शोधों में कहा गया है कि 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार तक जाया जा सकता था। 1480 में चक्रवात के कारण यह टूट गया और पुल डूब गया।
4. रामायण में कहा गया है कि श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई के लिए तैरते पत्थरों से पुल बनवाया था, जो किसी अन्य जगह से ले आए गए थे। कहते हैं कि ज्वालामुखी निर्मित पत्थर पानी में तैरते हैं, संभवतः इन्हीं पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था।
5. रामसेतु का जिक्र वाल्मीकि रामायण, रघुवंश, स्कंद, विष्णु, अग्नि, ब्रह्म पुराण, अर्थशास्त्र, दशरथ जातक, जानकी हरण आदि में मिलता है। ये भी पढ़ेंः दिन के अनुसार जानें प्रदोष व्रत का फल, बुध प्रदोष से मिलता है ज्ञान
7. दिसंबर 2022 में राज्य सभा में पृथ्वी मामलों के मंत्री जितेंद्र सिंह ने भारतीय सैटेलाइटों को रामसेतु की उत्पत्ति से संबंधित और वो कितना पुराना है इसको लेकर पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं। हमें चूना पत्थर के नन्हें द्वीप और कुछ टुकड़े मिले हैं। लेकिन पुख्ता तौर पर नहीं कह सकते कि ये सेतु का हिस्सा रहे होंगे। लेकिन कुछ निरंतरता दिखती है। हां इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संकेत तो जरूर हैं कि वहां कुछ तो था।