धर्म और अध्यात्म

रक्षासूत्र का रंग क्या होना चाहिए, जानें ज्योतिषीय टिप्स

हिंदू धर्म मानने वालों में वेश भूषा आदि से संबंधित कई तरह की मान्यताएं हैं। इन्हीं में से एक है हाथ में रक्षासूत्र बांधना, मान्यता है कि रक्षासूत्र बांधने से बुरी शक्तियों से रक्षा होती है। लेकिन ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि हर व्यक्ति की अलग राशि होती है, इष्ट देवता और लकी रंग भी अलग होते हैं. इसलिए व्यक्ति को इन्हीं के हिसाब से रक्षासूत्र के रंग का चयन करना चाहिए। इससे कई तरह के लाभ मिल सकते हैं।

Dec 16, 2022 / 03:35 pm

shailendra tiwari

शनिदेव की कृपा के लिए इस रंग का रक्षासूत्र या धागा बांधना चाहिए

भोपाल. भारत में प्राचीन समय से आम जनजीवन में ज्योतिष शास्त्र का प्रचलन है। इसका लोग व्यवहार में भी इस्तेमाल करते हैं। शत्रुओं की रक्षा के लिए हाथ में बांधने वाला रक्षा सूत्र भी राशि, इष्ट देवता और अपने राशि के ग्रह के हिसाब से बांधते थे। काफी लोग आज भी इसका ध्यान रखते हैं। मान्यता है कि यह रक्षासूत्र कठिनाइयां दूर करता है और परेशानियों से बचाता है। आइये जानते हैं कि किस ग्रह और देवता की कृपा के लिए किस रंग का रक्षा सूत्र बांधना चाहिए।
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आइये जानते हैं रक्षासूत्र के रंग का लाभ


1. ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक शनि देव की कृपा के लिए नीले रंग का सूती धागा कलाई में बांधना चाहिए।
2. बुध मजबूत करने के लिए हरे रंग का सॉफ्ट धागा हाथ में बांधना फायदेमंद रहेगा।
3. बृहस्पति और भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए हाथ में पीले रंग का रेशमी धागा बांधने की परंपरा है।
4. शुक्र ग्रह और लक्ष्मीजी के लिए सफेद रेशमी धागा बांधने की विद्वान सलाह देते हैं।
5. भगवान शिव की कृपा और कुंडली में चंद्रमा की मजबूती के लिए हाथ में सफेद धागा बांधना चाहिए।
6. ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक बिगड़े राहु-केतु और भैरव को मनाने के लिए काले रंग का धागा हाथ में बांधना चाहिए।
7. हनुमानजी और मंगल ग्रह की कृपा के लिए हाथ में लाल रंग के धागे को बांधने का प्रचलन है।
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रक्षासूत्र बांधने की कथाः एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार दैत्यों और देवताओं में युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में देवता पराजित हुए और दैत्यों के राजा ने तीनों लोकों को वश में कर लिया। इंद्र की सभा पर अधिकार कर लिया और यज्ञ कर्म जिससे देवताओं को शक्ति मिलती है, उसे बंद करा दिया। इस पर देवराज इंद्र देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे और अपनी दुर्दशा बताई और इससे निकलने का रास्ता पूछा।

इस पर देवगुरु बृहस्पति ने देवराज से रक्षाविधान करने के लिए कहा। इसके बाद देवराज ने श्रावण पूर्णिमा के दिन सुबह मंत्रों के साथ रक्षा विधान का आयोजन किया। इंद्राणी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों से स्वस्ति वाचन कराकर इंद्र की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा। इसके बाद देवराज ने फिर युद्ध शुरू किया, इसमें देवताओं की विजय हुई। इसके बाद से शत्रु से रक्षा के लिए हिंदू धर्म को मानने वाले लोग कलाई पर रक्षासूत्र बांधते हैं।

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