धर्म और अध्यात्म

एमपी, यूपी ही नहीं दस राज्यों से होकर गुजरता है राम वन गमन पथ, 248 स्थानों पर पहचानी गईं हैं निशानियां

Sri Ram Van Gaman Path: भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मणजी ने अयोध्या से श्रीलंका की यात्रा में हजारों किलोमीटर का सफर किया। 14 साल की यात्रा के दौरान उन्होंने जिस मार्ग को अपनाया, वही आज श्रीराम वन गमन पथ कहलाता है। भारत के दस राज्यों में फैले इस मार्ग में 248 स्थानों की पहचान की गई है जो किसी न किसी रूप में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के वनवास (ram van gaman path latest)से जुड़े हुए हैं। आइये जानते हैं ये निशानियां..

May 04, 2023 / 10:05 pm

Pravin Pandey

Sri Ram Van Gaman Path: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अपने 14 साल के वनवास के दौरान भगवान राम ने अयोध्या से श्रीलंका तक जाने में भारत के आठ राज्यों की यात्रा की। मान्यता है कि गांवों कस्बों में रहना प्रतिबंधित होने से इस यात्रा के दौरान उन्होंने जंगलों में कठिन वनवास बिताया। लोगों की आस्था को देखते हुए यूपी, एमपी, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, कर्नाटक महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, केरल तमिलनाडु के वन मार्ग पर पहचाने गए 248 स्थलों को विभिन्न सरकार सामाजिक, सांस्कृतिक रूप से विकसित करना चाहती है। इसी कड़ी में मध्य प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने इन स्थलों के विकास के लिए एक न्यास के गठन का फैसला किया।

यह भी मकसदः इस पर्यटन सर्किट के विकास का एक मकसद अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचे में निवेश कर रोजगार को बढ़ाना और धरोहर को संजोना है। छत्तीसढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का अपने राज्य में विकसित किए जा रहे सर्किट के संबंध में कहना है कि राम वन गमन पर्यटन सर्किट का उद्देशय अयोध्या से वनवास गमन के दौरान भगवान राम के छत्तीसगढ़ प्रवास से जुड़ी यादों को संजोना है।

यूपी में राम वन गमन पथ के प्रमुख स्थलः धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अयोध्या से वनवास जाने के दौरान भगवान राम यूपी में 37 प्रमुख स्थलों से गुजरे। इसमें अयोध्या, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद प्रमुख हैं। 4400 करोड़ की लागत से 210 किलोमीटर क्षेत्र में स्थित इन स्थलों को यूपी में सड़क मार्ग से जोड़ा जा रहा है। इसमें तमसा नदी का क्षेत्र, श्रृंगवेरपुर (निषादराज गुह का राज्य), प्रयागराज में वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, भरतकूप आदि हैं।

तमसा नदीः मान्यता है कि अयोध्या से 20 किलोमीटर दूर महादेवा घाट से दारागंज तक तमसा नदी बहती थी, इसी रास्ते भगवान इलाहाबाद की ओर बढ़े थे।
श्रृंगवेरपुर: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रयागराज से 20-22 किमी आगे श्रृंगवेरपुर (झूंसी क्षेत्र) जिसको अब सिंगरौर कहते हैं। इस क्षेत्र में निषादराज का राज्य था, यहां भगवान आए थे।

कुरई: सिंगरौर के नजदीक गंगा पार कुरई में एक मंदिर है जहां भगवान श्री राम, लक्ष्मण औए सीता के ठहरने और आराम करने की मान्यता है।
प्रयाग: संगम के पास यमुना नदी पार कर यहां से भगवान राम चित्रकूट पहुंचे थे।
चित्रकूट: चित्रकूट में भरत श्री राम को मनाने के लिए अपनी सेना के साथ पहुंचे थे। यहां राम ने साढ़े ग्यारह साल गुजारे थे।
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मध्य प्रदेश में राम वन गमन पथ के प्रमुख स्थल

मध्य प्रदेश में राम वन गमन पथ से जुड़े प्रमुख स्थल चित्रकूट (मप्र), सतना, अमरकंटक, पन्ना, जबलपुर, विदिशा आदि जिलों में स्थित हैं। मध्य प्रदेश में इन स्थलों का विकास तीन चरणों में किया जाना है। पहले चरण के लिए 300 करोड़ की योजना तैयार की गई है, जिसमें 60 फीसदी खर्च केंद्र सरकार करेगी।

सतनाः चित्रकूट के आगे सतना है जहां अत्रि ऋषि का आश्रम था।
अमरकंटक या शहडोल: जबलपुर और शहडोल होते हुए अमरकंटक पहुंचे थे।


छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पथ स्थल

छत्तीसगढ़ को भगवान राम का ननिहाल भी माना जाता है। यहां भगवान श्रीराम से जुड़े सीतामढ़ी हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (सरगुजा), शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुलिया(बलौदाबाजार), चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहाव सप्तऋषि आश्रम (धमतरी), जगदलपुर (बस्तर), रामाराम (सुकमा) आदि हैं। रायपुर से 27 किमी दूर चंदखुरी के कोशल्या माता मंदिर के पास से राम वन गमन पथ विकसित किया जा रहा है।

कोरिया जिले के सीतामढ़ी में हरचौका से लेकर सुकमा के रामाराम तक करीब 2260 किलोमीटर के राम वन गमन पर्यटन सर्किट को यहां छत्तीसगढ़ सरकार विकसित कर रही है। इसके पहले चरण का लोकार्पण भी पिछले साल अक्टूबर में किया जा चुका है। इसके तहत भगवान श्री राम की 51 फीट ऊंची प्रतिमा के अनावरण के साथ कौशल्या माता मंदिर का जीर्णोद्धार एवं परिसर के सौंदर्यीकरण का काम भी शामिल है।

झारखंडः झारखंड के सिमडेगा से लगभग 26 किलोमीटर दूर रामरेखा धाम है। मान्यता है कि वनवास के दौरान यहां भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मणजी के साथ आए थे। अग्निकुंड, सीता चूल्हा, चरण पादुका, गुप्ता गंगा आदि से यहां भगवान श्रीराम के आने का संकेत मिलता है। वहीं बोकारो जिले में भगवान राम के आगमन के निशान मिले हैं।

ओडिशाः चित्रकूट से निकलकर भगवान राम दंडकारण्य पहुंच गए थे, यहीं पर उन्होंने वनवास बिताया था। यह क्षेत्र मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाने के बराबर ओडिशा की महानदी से गोदावरी तक का क्षेत्र था। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल थे।

इसी दंडकारण्य क्षेत्र में गोदावरी के तट पर बसे आंध्रप्रदेश के भद्राचलम शहर में भद्रगिरि पर्वत पर स्थित सीता-रामचंद्र मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध है। भगवान राम ने कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर बिताए थे। स्थानीय मान्यता के के अनुसार दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।
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महाराष्ट्र में राम वन गमन पथ के प्रमुख स्थल
यहां के प्रमुख स्थल रामटेक, नासिक, तुलजापुर, नलदुर्ग आदि हैं। पंचवटी नासिक में श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए थे। सर्वतीर्थ और मृगव्याधेश्वर में भी श्रीराम के निशान हैं।
आंध्रप्रदेशः आंध्र प्रदेश के भद्राचलम शहर में राम-सीता मंदिर है जो भद्रगिरि पर्वत पर स्थिथ है। यह आंध्र प्रदेश के खम्मम जिले के भद्राचलम में है, इसे भी राम वनगमन पथ से जोड़ा जाएगा। इस राज्य में जटायु का मंदिर भी है।

केरलः मान्यता है कि केरल में भगवान राम पम्पा नदी के किनारे शबरी आश्रम गए थे। यहीं शबरी का आश्रम था। इसे भी विकसित किया जाना है।


कर्नाटकः ऋष्यमूक पर्वत और किष्किन्धा पर्वत कर्नाटक के हम्पी में स्थित है। मान्यता है कि यहां भगवान श्रीराम ने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की थी, जिसके बाद तमिलनाडु में सेना का गठन किया था।

तमिलनाडुः इस दक्षिणी राज्य के रामेश्वरम में समुद्र तट से भगवान राम की सेना ने श्रीलंका की ओर कूच किया था। इस जगह एक शिवलिंग भी स्थापित किया था। ये जगह धनुषकोडी के नाम से जानी जाती है।

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