धर्म और अध्यात्म

शक्ल नहीं गुण बनाते हैं “अमूल्य”

एक बार एक पत्ते के भीतर यह विचार पैदा हो गया कि सभी लोग फूलों की ही तारीफ करते हैं, लेकिन पत्ते की तारीफ कोई नहीं करता

Apr 16, 2015 / 05:04 pm

सुनील शर्मा

एक सरोवर के तट पर एक खूबसूरत बगीचा था। वहां अनेक प्रकार के फूलों के पौधे लगे हुए थे। लोग वहां आते तो वे वहां खिले तमाम रंगों के गुलाब के फूलों की तारीफ जरूर करते। एक बार एक पत्ते के भीतर यह विचार पैदा हो गया कि सभी लोग फूलों की ही तारीफ करते हैं, लेकिन पत्ते की तारीफ कोई नहीं करता। इसका मतलब यह है कि मेरा जीवन ही व्यर्थ है। यह विचार आते ही पत्ते के अंदर हीन भावना घर करने लगी और वह मुरझाने लगा।

कुछ दिनों बाद बहुत तेज तूफान आया। जितने भी फूल थे हवा के साथ न जाने कहां चले गए। चूंकि पत्ता अपनी हीनभावना से मुरझाकर कमजोर पड़ गया था, इसलिए वह भी टूटकर, उड़कर सरोवर में जा गिरा। पत्ते ने देखा कि सरोवर में एक चींटी भी पड़ी थी। वह अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी। चींटी को थकान से बेदम होते देख पत्ता उसके पास आ गया। उसने चींटी से कहा, “घबराओ मत, तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें किनारे पर ले चलूंगा। चींटी पत्ते पर बैठ गई और सही-सलामत कि नारे तक आ गई।

चींटी ने कहा, “मुझे तमाम पंखुडियां मिलीं, लेकिन किसी ने भी मेरी मदद नहीं की, लेकिन आपने तो मेरी जान बचा ली। यह सुनकर पत्ते की आंखों में आंसू आ गए। वह बोला,”धन्यवाद तो मुझे देना चाहिए कि तुम्हारी वजह से मैं अपने गुणों को जान सका। अभी तक तो मैं अपने अवगुणों के बारे में ही सोच रहा था, आज पहली बार अपने गुणों को पहचान पाया हूं।

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