ऐसे में सभी को सिवाय खुद को बचाने के कोई उपाय समझ में नहीं आ रहा है। अब तक दुनिया में इसका इतना संक्रमण बढ़ चुका है कि लोग अनजाने में ही इसके शिकार तक बन जा रहे हैं।
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इस वायरस से बचने के लिए हम लोग एक बार फिर से अपनी प्राचीन संस्कृति और मान्यताओं की ओर मुड़े है। इसके तहत घर में प्रवेश करने से पहले हाथ मुंह धोना, हाथ मिलाने की बजाए दूर से नमस्ते करना, मुंह और सिर को ढककर रखना आदि शामिल है।
ऐसे में आज हम आपको शास्त्रों में वर्णित कुछ ऐसे श्लोक और उनके अर्थ के बारे में बताने जा रहे हैं, पंडित सुनील शर्मा के अनुसार इनके संबंध में माना जाता है कि इन्हें अपनाने से संक्रमण आपके पास तक नहीं फटकता…
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1. न पहनें ऐसे वस्त्र
न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयात्।
विष्णुस्मृति के अनुसार व्यक्ति को एक बार पहना गया कपड़ा धोए बिना फिर से धारण नहीं करना चाहिए। कपड़ा एक बार पहनने पर वह वातावरण में मौजूद जीवाणु और विषाणु के संपर्क में आ जाता है और दोबारा बिना धोए पहनने लायक नहीं रह जाता है।
2. ऐसा में स्नान जरूर करें
चिताधूमसेवने सर्वे वर्णा: स्नानम् आचरेयु:।
वमने श्मश्रुकर्मणि कृते च
विष्णुस्मृति में यह भी कहा गया है कि अगर आप श्मशान से आ रहे हों या फिर आपको उल्टी हो चुकी हो या फिर दाढ़ी बनवाकर और बाल कटवाकर आ रहे हों तो आपको घर में आकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए, नहीं तो आपको संक्रमण का खतरा बना रहता है।
3. ऐसे कपड़ों से न पोंछें शरीर
अपमृज्यान्न च स्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभि:।
मार्कण्डेय पुराण में लिखा है कि स्नान करने के बाद जरा भी गीले कपड़ों से तन को नहीं पोंछना चाहिए। ऐसा करने से त्वचा के संक्रमण की आशंका बनी रहती है। यानि किसी सूखे कपड़े (तौलिए) से ही शरीर को पोंछना चाहिए।
4. हाथ से परोसा गया खाना
लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च।
लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत्।
धर्मंसिंधु के अनुसार नमक, घी, तेल या फिर कोई अन्य व्यंजन, पेय पदार्थ या फिर खाने का कोई भी सामान यदि हाथ से परोसा गया हो यानि उसको देते समय किसी अन्य वस्तु जैसे चम्मच आदि का प्रयोग न किया गया हो तो वह खाने योग्य नहीं रह जाता है। इसलिए कहा जाता है कि खाना परोसते समय चम्मच का प्रयोग जरूर करें।
5. यह कार्य मुंह और सिर को ढककर ही करें
घ्राणास्ये वाससाच्छाद्य मलमूत्रं त्यजेत् बुध:।
नियम्य प्रयतो वाचं संवीताङ्गोऽवगुण्ठित:।
वाधूलस्मृति और मनुस्मृति में कहा गया है कि हमें हमेशा ही नाक, मुंह तथा सिर को ढ़ककर, मौन रहकर मल मूत्र का त्याग करना चाहिए। ऐसा करने पर हमारे ऊपर संक्रमण का खतरा नहीं रहता है।