नरसिंह जयंती पूजा का समयः पुरोहितों के अनुसार नृसिंह जयंती पर भगवान विष्णु और नृसिंह स्वरूप की पूजा के लिए संकल्प का समय 11.58 एएम से 1.52 पीएम तक है, जबकि भगवान नरसिंह की पूजा का विशेष समय चार मई शाम 4.27 पीएम से 7.02 पीएम के बीच है। मान्यता है कि नरसिंह अवतार ऐसे समय हुआ था जब न दिन था, न रात थी। इसीलिए ऐसे समय पर ही भगवान नृसिंह की पूजा की जाती है।
नृसिंह जयंती पारण का समयः 5 मई 6.08 एएम के बाद (दृक पंचांग के अनुसार, कुछ कैलेंडर में समय में कुछ फर्क हो सकता है) इसलिए खास है नृसिंह जयंतीः नृसिंह जयंती आज गुरुवार को है, यह दिन भगवान विष्णु की पूजा का साप्ताहिक दिन है और इसी दिन नृसिंह जयंती पड़ी है। इसलिए भगवान नरसिंह की पूजा के लिए यह दिन विशेष बन गया है। इसके अलावा आज सिद्धि योग बन रहा है, अगले दिन 5 मई को 9.17 बजे तक यह योग रहेगा। यानी नरसिंह पूजा सिद्धि योग में होगी। यह योग बेहद खास है, इस योग में पूजा का विशेष फल मिलता है। सिद्धि योग और गुरुवार को भगवान विष्णु के चौथे अवतार का दिन होने से यह दिन विशेष बन गया है।
1. सुबह स्नान ध्यान कर पूजा स्थल को स्वच्छ करें
2. लकड़ी की चौकी पर भगवान नरसिंह और माता लक्ष्मी की तस्वीर रखें
3. गंगाजल से स्नान कराएं, कुमकुम, अक्षत, केसर, नारियल, फलफूल पांच तरह की मिठाई अर्पित करें।
4. विधि विधान से पूजा के बाद भगवान नरसिंह के मंत्रों का जाप करें
5. प्रसाद चढ़ाने के बाद इसे घर के सभी सदस्यों को बांटें
6. इस दिन सोना, वस्त्र, तेल आदि का दान करना चाहिए
नृसिंह अवतार की कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार किसी समय हिरण्यकश्यप नाम का असुर राज्य करता था। उसने ब्रह्माजी से न दिन में और न रात में, न देवता से नर से, न धरती पर और न आकाश में मौत होने का वरदान पा लिया था। इससे खुद को अमर समझने लगा और पूरी सृष्टि को प्रताड़ित करने लगा। उससे सभी मनुष्य और देवता त्रस्त थे। वह लोगों पीड़ा पहुंचाता था, और भगवान विष्णु को शत्रु मानता था।
साथ ही लोगों को अपनी पूजा के लिए विवश कर रहा था। लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र भगवान विष्णु का भक्त था, बाल्यकाल में उसे भगवत भक्ति का ज्ञान प्राप्त हो गया था। हिरण्यकश्यप को यह पता चला तो वह नाराज हुआ, पहले तो उसने भक्त प्रह्लाद को समझाने की कोशिश की। लेकिन भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति से नहीं डिगा। इस पर वह प्रह्लाद को तरह-तरह की यातनाएं देने लगा, उनकी हत्या की कोशिश की। प्रह्लाद को ऊंची पहाड़ी से फेंकवाया, हाथी से कुचलवाने की कोशिश की लेकिन भगवान ने हर जगह प्रह्लाद की रक्षा की।
इससे हिरण्यकश्यप और तिलमिला गया। उसकी बहन होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था, उसने होलिका को आदेश दिया कि प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाए। इस बार भी प्रह्लाद बच गए और होलिका भस्म हो गई। इससे हिरण्यकश्यप का गुस्सा और बढ़ गया। उसने भक्त प्रह्लाद को एक खंभे में बांध दिया और कहा कि तुम कहते हो नारायण कण-कण में हैं तो अब बुलाओ और यातना देने लगा। भक्त की पीड़ा देख एक खंभे से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार लेकर प्रकट हुए और वैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन हिरण्यकश्यप के अत्याचार का अंत किया। इसलिए इस दिन नृसिंह जयंती मनाई जाने लगी। बाद में लंबे समय तक भक्त प्रह्लाद ने पाताल लोक पर धर्म पूर्वक शासन किया।