1. शंकराचार्य के अनुसार जिस माला से हम जाप कर रहे हैं, वह माला समूची होनी चाहिए। इस माला का एक भी दाना टूटा-फूटा या क्षतिग्रस्त नहीं होना चाहिए वर्ना यह माला खराब हो जाती है। इससे जाप का उल्टा प्रभाव भी पड़ सकता है। इस माला से दोबारा तब तक जाप नहीं करना चाहिए, जब तक कि टूटा मनका बदल न दिया जाए।
2. शंकराचार्य के अनुसार माला के दानों की संख्या सही होनी चाहिए। माले में मनके की संख्या 27, 54 या 108 हो सकती है। इनके अनुसार 27 नक्षत्र हैं, यही बार-बार घूमते रहते हैं, जिससे सृष्टि का चक्र चलता रहता है। हर समय ग्रह किसी न किसी नक्षत्र में होते हैं, जिनका हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है। हर नक्षत्र में चार चरण होते हैं और इन्हीं के हिसाब से हम माला जाप करते हैं। ताकि हमारा समय सही हो जाए। इसी को वैष्णव लोग 27 दाने की माला को सुमिरनी बनाते हैं।
3. जिस माला से हम जाप करना चाहते हैं उसके हर दो मनके के बीच गांठ जरूर होनी चाहिए, बिना गांठ की माला अशुद्ध होती है। इसमें सुमेरू भी लगा होना चाहिए और जपते समय सुमेरू का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
4. माला को बिना प्रतिष्ठा के न धारण करना चाहिए और न जपना चाहिए। साथ ही जपने की माला और पहनने की माला को अलग रखना चाहिए। जपने की माला को धारण नहीं करना चाहिए और धारण की हुई माला से मंत्र नहीं जपना चाहिए।
5. शंकराचार्य के अनुसार बिना माला के मंत्र जाप आसुरी होता है, इसका फल असुरों को मिल जाता है। इसलिए नाम स्मरण बिना माला के कर सकते हैं, लेकिन मंत्र जाप माला से और वेदों में बताई विधि से ही करना चाहिए।
6. माला जाप में इसका भी ध्यान रखना चाहिए कि माला ढंकी हुई हो, किसी को दिखाई न दे और इसके लिए इसे अनामिका पर रख कर अंगूठे से रोकें और मध्यमा से चलाएं। तर्जनी अंगुली कर माला में सुमेरू बनती है, इसलिए इसे माला जाप से अलग रखा जाता है। इसका माला से स्पर्श नहीं होना चाहिए। माला जाप के लिए तर्जनी सीधे रखिए, अनामिका पर माला रखिए और मध्यमा से चलाइए। अंगूठे से रोके रखिए।
7. प्रातःकाल माला जाप कर रहे हैं तो माला को नाभि के पास, मध्याह्न काल में हृदय के पास और सायंकाल में नासिका के समानांतर रखते हुए इसका जाप करना चाहिए।
8. इसके अलावा कभी दूसरे की माला से जप नहीं करना चाहिए, अगर माला नहीं है तो कर माला से जाप करें। अनामिका के मूल से मध्यमा तक कर माला बनती है।