Love Marriage: देवता और ऋषि भी करते थे लव मैरिज, जानें मनुस्मृति में कितने तरह के विवाहों का जिक्र
Love Marriage In Hindus: आपने या आपके आसपास किसी न किसी व्यक्ति ने लव मैरिज जरूर की होगी, भले ही नाक का सवाल बनाकर घर परिवार के लोगों ने इसका विरोध किया हो। लेकिन क्या आपको पता है प्राचीन काल में देवी-देवताओं और ऋषियों में भी यह विवाह प्रचलित था। आइये जानते हैं किन देवताओं और ऋषियों ने की थी लव मैरिज और मनुस्मृति में कितने तरह के विवाहों का जिक्र है।
Love Marriage In Hindu: गंधर्व विवाह देवी देवता भी किया करते थे
Love Marriage In Hindu : हिंदू धर्म में जन्म से मृत्यु तक कई संस्कार किए जाते हैं। इनमें विवाह संस्कार भी शामिल है, जो हिंदू धर्म के 4 आश्रमों ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास की बुनियाद मानी जाती है। हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक ग्रंथ मनुस्मृति में 8 तरह के विवाहों का जिक्र मिलता है।
इनमें से 2 को आज भी सामाजिक मान्यता है, जिनमें से दूसरा गंधर्व विवाह आजकल के लव मैरिज के समान ही है। प्राचीन ग्रंथों में देवी देवताओं और ऋषियों में इस विवाह के प्रचलन का उल्लेख मिलता है। आइये जानते हैं मनुस्मृति में कितने तरह के विवाहों का जिक्र है और क्या है गंधर्व विवाह, साथ में किन देवी देवताओं, ऋषियों ने गंधर्व विवाह किया था ..
कितने प्रकार के विवाह होते हैं, ये हैं नाम ..
Hindu : हिंदू धर्म में विवाह एक धार्मिक संस्कार (शुद्धि, परिवर्धन) है। शुद्ध अंतःकरण ही सुखमय दांपत्य जीवन का आधार बन सकता है। मान्यता है कि उचित रीति से ब्रह्म विवाह करके पितरों के श्राद्ध-तर्पण के योग्य धार्मिक और सदाचारी पुत्र उत्पन्न करने से पितृऋण चुकता है। इसी कारण हिंदू धर्म में विवाह को पवित्र संस्कार की संज्ञा दी गई है। आइये जानते हैं मनुसमृति में विवाह के कौन से 8 प्रकार बताए गए हैं ..
ब्रह्म विवाह
इस विवाह में वर वधू पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोज्ञ वर से कन्या की इच्छानुसार विवाह किया जाता है। वैदिक रीति और नियमों से किए जाने वाला यह विवाह ब्रह्म विवाह कहलाता है। इसी विवाह को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और हिंदू समाज में सबसे अधिक प्रचलित भी यही पद्धति है।
इसमें दूर-दूर तक रिश्तों की छानबीन की जाती है, कुंडली मिलान आदि के बाद दोनों ही पक्ष के संतुष्ट होने पर शुभ मुहूर्त में देवी पूजा, वर वरण तिलक, हरिद्रालेप, द्वार पूजा, मंगलाष्टकं, हस्तपीतकरण, मर्यादाकरण, पाणिग्रहण, ग्रंथिबन्धन, प्रतिज्ञाएं, प्रायश्चित, शिलारोहण, सप्तपदी, शपथ आश्वासन आदि रीतियों को पूर्ण किया जाता है।
दैव विवाह
किसी सेवा धार्मिक कार्य या उद्देश्य के लिए या मूल्य के रूप में अपनी कन्या को किसी विशेष वर को दे देना दैव विवाह कहलाता है। हालांकि इसमें कन्या की इच्छा की अनदेखी नहीं की जा सकती। यह मध्यम प्रकार का विवाह है। इस तरह के विवाह अब नहीं किए जाते हैं।
आर्श विवाह
कन्या पक्ष को कन्या का मूल्य देकर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना आर्श विवाह कहलाता है। इसे भी मध्यम विवाह माना जाता है।
प्रजापत्य विवाह
कन्या की सहमति के बिना माता-पिता द्वारा उसका विवाह अभिजात्य वर्ग (धनवान और प्रतिष्ठित) के वर से करना प्रजापत्य विवाह कहलाता है।
यह विवाह आजकल के प्रेम विवाह यानी लव मैरिज के समान है। इसमें परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या विवाह कर लेते हैं। अनुष्ठान और प्रक्रिया ब्रह्म विवाह जैसी ही होती है। कई बार वे रीति-रिवाज का ध्यान नहीं देते, यह विवाह गंधर्व विवाह कहलाता है।
इस तरह गंधर्व विवाह के अनुसार जब पुरुष और कन्या एक दूसरे से प्रेम करते हैं, चाहे वर्ण, जाति समुदाय कुछ भी हो और परिवार की सहमति के बिना विवाह कर लेते हैं तो ये गंधर्व विवाह कहा जाएगा। साथ ही यह धर्म के अनुसार मान्य भी होगा। यह विवाह के आठ प्रकारों में ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्श विवाह, प्रजापत्य विवाह के बाद पांचवें नंबर पर आता है।
हालांकि वर्तमान में इसका एक और विद्रूप रूप सामने आ रहा है, आजकल यौन आकर्षण और धन तृप्ति के लिए लिव इन रिलेशनशिप के मामलों को भी इसमें शामिल किया जा रहा है।
असुर विवाह
कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह करने की विधि असुर विवाह के नाम से जाना जाता है। यह विवाह निंदनीय माना जाता है।
राक्षस विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना राक्षस विवाह की श्रेणी में आता है।
पैशाच विवाह
कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक संबंध बना लेना और उससे विवाह करना पैशाच विवाह की श्रेणी में आता है।
1. गंधर्व विवाह में कन्या और पुरुष जब दोनों अपने ब्रह्मचर्य आश्रम की आयु से निकलकर गृहस्थ आश्रम की आयु में प्रवेश कर चुके हों अर्थात् दोनों बालिग हो चुके हों, तभी किया जा सकता है।
2. गंधर्व विवाह में कन्या और वर की पूर्ण सहमति होनी चाहिए, इसमें किसी प्रकार का सौदा, पैसों का लेनदेन, जोर-जबरदस्ती नहीं की जानी चाहिए। 3. अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लेकर मंदिर या धार्मिक स्थल पर विवाह किया गया हो और किसी प्रकार का धोखा ना किया गया हो।
4. दोनों ने एक-दूसरे को अपना असली परिचय दिया हो और ऐसी कोई बात ना छुपाई हो जो विवाह के बाद के जीवन पर प्रभाव डाले।
गंधर्व विवाह करने वाले देवी देवता, ऋषि और राजा
कृष्ण-रुक्मिणी विवाह (Krishna Rukmini Vivah)
द्वापर युग में भगवान कृष्ण और रुक्मिणी का विवाह गंधर्व विवाह की श्रेणी में आता है। इसमें रुक्मिणी के निवेदन पर भगवान कृष्ण ने उनके भाई और घरवालों की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया था।
शिव सती का विवाह (Shiva Sati Vivah)
God Love Marriage: भगवान शिव और सती का विवाह भी इस श्रेणी में रखा जा सकता है, क्योंकि सती के विवाह के लिए उनके पिता प्रजापति दक्ष तैयार नहीं थे और अन्य देवताओं के दबाव में उन्होंने इस विवाह के विरोध का अपना हठ छिपा लिया था। लेकिन वो इसको लेकर बैर पाले बैठे रहे, जिसका अंत दक्ष के सिर कटने और सती के स्वयं ऊर्जा में स्वाहा होने से हुआ।
दुष्यंत शकुंतला और पृथ्वीराज संयोगिता का विवाह
दुष्यंत शकुंतला का विवाह भी गंधर्व विवाह की श्रेणी में आता है। कारण कि वन में रह रही शकुंतला ने पालक पिता ऋषि की आज्ञा के बगैर ही राजा दुष्यंत से विवाह कर लिया था। पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता का विवाह भी इस श्रेणी में रखा जाता है। क्योंकि संयोगिता के घर वाले इस विवाह पर राजी नहीं थे। पुरुरवा उर्वशी, वासवदत्ता उदयन का विवाह भी इसी श्रेणी में आता है।
अर्जुन सुभद्रा का विवाह (Arjun Subhadra Vivah)
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा का अर्जुन से विवाह गंधर्व विवाह की श्रेणी में आता है। क्योंकि सुभद्रा के भाई बलराम उनका विवाह दुर्योधन से करना चाहते थे।
गंगा और शांतुन का विवाह
देवी गंगा और भीष्म पितामह के पिता शांतनु का विवाह भी गंधर्व विवाह की श्रेणी में आता है। क्योंकि इसमें भी गंगा के पिता पर्वतराज हिमालय से सहमति नहीं ली गई थी।
ऋषि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका का विवाह
ऋषि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका का विवाह भी गंधर्व विवाह की श्रेणी में आता है। इसमें भी विश्वामित्र की तपस्या भंग करने आई अप्सरा ने ऋषि से विवाह कर लिया था। इसमें वर-वधू पक्ष से सहमति की जरूरत नहीं समझी गई।
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