माना जाता है कि पितृ पक्ष में पितर अपने लोक से धरती की यात्रा पर आते हैं, और अपने रिश्तेदारों को खुश देखकर प्रसन्न भी होते हैं। लेकिन इस समय यदि कोई अपने पितरों को याद नहीं करता या उनके लिए श्राद्ध आदि धार्मिक कार्य नहीं करता तो इससे पितर नाराज हो जाते हैं।
वहीं जो ये समस्त कार्य करते हैं, उनसे प्रसन्न होकर पितर उन्हें कई आशीर्वाद प्रदान करते हैं। वहीं जो यह कर्म नहीं करते हैं,उनसे पितर नाराज होकर उन्हें श्राप तक दे जाते हैं। जिसके कारण उनके कार्यों में विध्न उत्पन्न होने शुरु हो जाते हैं।
हिंदू धर्म के अनुसार यह कार्य करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। श्राद्ध पक्ष के सभी 16 दिनों तक तर्पण करने से पूर्वजों का अनवरत आशीर्वाद प्राप्त होता है।
जानकारों के अनुसार श्राद्ध पक्ष में हर तिथि का अपना अलग महत्व होता है, ऐसे में किसी का भी किसी भी तिथि में श्राद्ध मान्य नहीं होता। इसके तहत हर तिथि के लिए कुछ खास नियम हैं, जिसके चलते हर तिथि पर कुछ निश्चित लोगों का ही श्राद्ध किया जा सकता है।
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जिन लोगों का देहांत पूर्णिमा तिथि पर हुआ हो, अथवा स्वाभाविक रूप से मरने वालों का श्राद्ध भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है।
प्रतिपदा को मृत्यु प्राप्त करने वाले और नाना तथा नानी (उनकी मृत्यु किसी भी तिथि में हुई हो) का श्राद्ध भी केवल अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को ही किया जाता है।
जिन लोगों का देहांत द्वितिया तिथि को हुआ हो,ऐसे लोगों का श्राद्ध इस दिन किया जाता है। तृतीया श्राद्ध – बृहस्पतिवार, 23 सितंबर
जिन लोगों की मृत्यु तृतीया तिथि पर हुई हो, उसका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
चतुर्थी तिथि पर देहांत वालो का श्राद्ध इस दिन किया जाता है। Must Read- Pitru Paksha 2021: कोरोना से मृत लोग बनाएंगे पितृ दोष व कालसर्प दोष!
पंचमी श्राद्ध – शनिवार, 25 सितंबर
जिनका देहांत पंचमी तिथि को हुआ हो। या जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो। ऐसे लोगों का श्राद्ध पंचमी तिथि को किया जाता है। इसे कुंवारा पंचमी श्राद्ध भी कहा जाता है।
नोट: इस साल 26 सितंबर 2021 को श्राद्ध तिथि नहीं है।
षष्ठी श्राद्ध – सोमवार, 27 सितंबर
षष्ठी तिथि को जिनका देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध षष्ठी तिथि को किया जाता है।
सप्तमी श्राद्ध – मंगलवार, 28 सितंबर
जिन लोगों का देहांत किसी भी माह और किसी भी पक्ष की सप्तमी पर हुआ हो, उनका श्राद्ध सप्तमी तिथि पर किया जाता है।
अष्टमी श्राद्ध – बुधवार, 29 सितंबर
किसी भी माह की अष्टमी तिथि को मृत्यु को प्राप्त लोगों का श्राद्ध अष्टमी तिथि पर होता है।
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नवमी श्राद्ध – बृहस्पतिवार,30 सितंबर
सुहागिन रहते हुए देहांत प्राप्त स्त्रियों सहित मुख्य रूप से माताओं और परिवार की सभी स्त्रियों के श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है, चाहे उनकी मृत्यु कभी भी हुई हो। इस दिन को मातृनवमी भी कहते हैं।
दशमी श्राद्ध – शुक्रवार,01 अक्टूबर
दशमी तिथि पर मृत लोगों का श्राद्ध दशमी तिथि पर किया जाता है।
एकादशी श्राद्ध – शनिवार,02 अक्टूबर
मृत संन्यासियों और जिनका भी इस दिन देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध एकादशी पर किया जाता है।
द्वादशी श्राद्ध – रविवार, 03 अक्टूबर
द्वादशी तिथि को मृत्यु प्राप्त करने वाले लोगों व संन्यासियों (मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो) का श्राद्ध केवल पितृपक्ष की द्वादशी को ही किया जाता है।
त्रयोदशी श्राद्ध – सोमवार,04 अक्टूबर
पितृपक्ष की त्रयोदशी अथवा अमावस्या के दिन केवल मृत बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।
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चतुर्दशी श्राद्ध – मंगलवार,05 अक्टूबर
अकाल मृत्यु यानि किसी प्रकार की दुर्घटना, महामारी, हत्या, आत्महत्या या अन्य किसी प्रकार से ऐसी मृत्यु जो स्वाभाविक न हो। इन लोगों का श्राद्ध मृत्यु तिथि के हिसाब से नहीं किया जाता। ऐसे लोगों का श्राद्ध केवल चतुर्दशी तिथि को ही किया जाता है, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो।
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अमावस्या श्राद्ध – बुधवार, 06 अक्टूबर
अमावस्या तिथि, पूर्णिमा तिथि और चतुर्दशी तिथि को देहांत प्राप्त करने वालों के अतिरिक्त वह लोग जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो या परिजनों को याद न हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इसे ही सर्व पितृ अमावस्या भी कहते है।