सामान्यतः खर का अर्थ गधा (गर्दभ) होता है, इससे खरमास का अर्थ गर्दभ के महीने से जोड़ा जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की मार्कण्डेय पुराण की खरमास की कहानी ..
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने सात घोड़ों के रथ पर बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं। उन्हें परिक्रमा के दौरान कहीं भी रूकने की इजाजत नहीं है। लेकिन सूर्य के सातों घोड़े साल भर दौड़ते-दौड़ते तड़पने लगते हैं। इसी तरह एक बार परिक्रमा के दौरान प्यास से तड़पते घोड़ों की दशा देखकर सूर्य नारायण को दया आ गई। उन्होंने घोड़ों को इस मुसीबत से बचाने और पानी पिलाने के लिए एक तालाब के पास रूकने को सोचा, तभी उन्हें अपनी प्रतिज्ञा याद आ गई कि घोड़े बेशक प्यासे रह जाएं लेकिन उनकी यात्रा पर विराम नहीं लगेगा, क्योंकि सूर्य के भ्रमण में विराम से सौर मंडल में अनर्थ हो जाएगा।
खरमास की कहानी
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने सात घोड़ों के रथ पर बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं। उन्हें परिक्रमा के दौरान कहीं भी रूकने की इजाजत नहीं है। लेकिन सूर्य के सातों घोड़े साल भर दौड़ते-दौड़ते तड़पने लगते हैं। इसी तरह एक बार परिक्रमा के दौरान प्यास से तड़पते घोड़ों की दशा देखकर सूर्य नारायण को दया आ गई। उन्होंने घोड़ों को इस मुसीबत से बचाने और पानी पिलाने के लिए एक तालाब के पास रूकने को सोचा, तभी उन्हें अपनी प्रतिज्ञा याद आ गई कि घोड़े बेशक प्यासे रह जाएं लेकिन उनकी यात्रा पर विराम नहीं लगेगा, क्योंकि सूर्य के भ्रमण में विराम से सौर मंडल में अनर्थ हो जाएगा।लेकिन भगवान सूर्य नारायण घोड़ों को भी प्यास से बचाना चाहते थे, और उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। इसी बीच जब सूर्य नारायण इस समस्या का हल खोजने के लिए गतिमान अवस्था में चारों ओर देख रहे थे। इसी बीच सूर्य भगवान को पानी के कुंड के आगे दो गधे दिख गए।
इस पर उन्होंने घोड़ों को आराम करने और पानी पीने के लिए छोड़ दिया और अपने रथ में कुंड के पास खड़े दो गधो को जोड़कर आगे बढ़ गए। अब स्थिति ये रही कि गधे यानी खर अपनी मंद गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे, जिसके कारण सूर्य की ऊर्जा कमजोर रूप में धरती पर प्रकट हुई। एक माह बाद मकर संक्रांति के दिन फिर सूर्य देव कुंड के पास पहुंचे और गधों को छोड़कर अपने घोड़ों को रथ में जोतकर आगे बढ़े। इसके बाद सूर्य का तेजोमय प्रकाश धरती पर बढ़ने लगा।
इसी कारण है कि पूरे पौष मास के अंतर्गत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य देवता का प्रभाव क्षीण हो जाता है और कभी-कभार ही उनकी तप्त किरणें धरती पर पड़ती हैं। तब से ही यह क्रम जारी है।
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