साल 2024 में 14 मार्च को सूर्य देव दोपहर 12.36 बजे कुंभ राशि से मीन राशि में आएंगे। इसी के साथ खरमास की शुरुआत होगी। इसके बाद 13 अप्रैल को सूर्य देव मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य देव के मेष राशि में प्रवेश करने के साथ ही खरमास अवधि की समाप्त हो जाएगी।
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खरमास दो शब्दों से मिलकर बना है खर और मास, इसमें खर का अर्थ गर्दभ (Donkey) और कड़ा होता है, जबकि मास का अर्थ महीना। इस तरह इसके दो अर्थ निकलते हैं एक तपस्या और जीवन में कठिनाई का सामना करने वाला महीना या गर्दभ का मास। इससे जुड़ी कथा के अनुसार इस महीने में सूर्य नारायण अपने अश्वों को आराम करने के लिए छोड़ देते हैं, जबकि संसार में ऊर्जा का संचालन सामान्य रखने के लिए खर की सवारी करते हैं, जिससे उनकी गति धीमी हो जाती है। मान्यता है इसी कारण इस महीने को खरमास कहते हैं।
खरमास दो शब्दों से मिलकर बना है खर और मास, इसमें खर का अर्थ गर्दभ (Donkey) और कड़ा होता है, जबकि मास का अर्थ महीना। इस तरह इसके दो अर्थ निकलते हैं एक तपस्या और जीवन में कठिनाई का सामना करने वाला महीना या गर्दभ का मास। इससे जुड़ी कथा के अनुसार इस महीने में सूर्य नारायण अपने अश्वों को आराम करने के लिए छोड़ देते हैं, जबकि संसार में ऊर्जा का संचालन सामान्य रखने के लिए खर की सवारी करते हैं, जिससे उनकी गति धीमी हो जाती है। मान्यता है इसी कारण इस महीने को खरमास कहते हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार खरमास को शुभ काम के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। लेकिन इस समय जप तप करना चाहिए और सूर्य नारायण भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। आइये जानते हैं खरमास में क्या न करें..
1. खरमास में शादी, मुंडन, गृह प्रवेश आदि काम नहीं करने चाहिए।
2. खरमास में नई संपत्ति, नया वाहन खरीदने, नया कारोबार शुरू करने से बचना चाहिए।
3. खरमास में तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।
4. खरमास में सूर्य देव की पूजा इन सूर्य देव के मंत्रों के जाप से करनी चाहिए।
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1. ॐ सूर्याय नम:
2. ॐ घृणि सूर्याय नम:
3. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा
4. ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:
5. ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ
1. ॐ सूर्याय नम:
2. ॐ घृणि सूर्याय नम:
3. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा
4. ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:
5. ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ