धर्म और अध्यात्म

आज रात कालाष्टमी व्रत पूजा, जान लें इसकी कथा

कालाष्टमी के दिन रात में भगवान शिव के भैरव रूपकी पूजा होती है। इस पूजा में पौराणिक कथा सुनना और कहना लाभकारी है। इसलिए आइये जानते हैं कालाष्टमी की पौराणिक कथा।

Dec 16, 2022 / 10:53 am

shailendra tiwari

कालाष्टमी पर भैरव की कथा

भोपाल. हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी व्रत रखा जाता है। इस दिन रात में भगवान शिव के भैरव रूप की पूजा की जाती है। पौष महीने की कालाष्टमी आज शुक्रवार 16 दिसंबर को ही पड़ रही है। इसलिए आज रात ही शिव के भैरव रूप की पूजा की जाएगी। यह तिथि भगवान भैरव से शक्तियां प्राप्त करने की तिथि मानी जाती है, इसलिए आज के व्रत का विशेष महत्व है। पुरोहितों का कहना है कि व्रत में पूजा के दौरान कालाष्टमी व्रत कथा भी सुननी चाहिए, आइये पढ़ते हैं कालाष्टमी व्रत कथा.
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पौष कालाष्टमी शुभ मुहूर्त (Kalashtami 2022 Shubh Muhurat): हिंदू पंचांग के अनुसार कालाष्टमी (Kalashtami) की शुरुआत 16 दिसंबर 2022 को सुबह 01 बजकर 39 मिनट से होगी जबकि यह तिथि 17 दिसंबर को सुबह 03 बजकर 02 मिनट पर संपन्न होगी।
कालाष्टमी व्रत की पौराणिक कथाः कथा के अनुसार प्राचीन समय की बात है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव में कौन श्रेष्ठ है, इसको लेकर सवाल उठ गया। इस पर तय हुआ कि दूसरे अन्य देवताओं को बुलाकर पूछ लिया जाय। देवताओं की बैठक में सभी ने अपनी-अपनी राय दी और उत्तर तलाशने की कोशिश की। लेकिन जो उत्तर मिला उसका समर्थन शिवजी और विष्णुजी ने किया लेकिन ब्रह्माजी उससे सहमत नहीं हुए। बल्कि उन्होंने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गए।
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किसने काटा ब्रह्माजी का सिरः भगवान शिव ने अपने भैरव स्वरूप को जन्म दे दिया। इस समय यह अवतार भी काफी क्रोध में था, इसने ब्रह्माजी के पांच में से एक मुख को काट दिया, शिव की इस लीला से देवता घबरा गए। इसके बाद ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से अपनी गलती के लिए क्षमा याचना की, इस पर वे शांत हुए और अपने मूल स्वरूप में आए।
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कहां खत्म हुआ भैरव का दंडः इधर, ब्रह्माजी का सिर काटने से भैरव को ब्रह्म हत्या का पाप लगा. इसके कारण उन्हें कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। बाद में घूमते-घूमते कई वर्षों बाद काशी में आने के बाद इन्हें इनके पाप से मुक्ति मिली। वाराणसी में भैरव का दंड समाप्त होने से इसे दंडपाणि भी कहा जाता है।
भैरव का वाहन क्या हैः भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है, इनके हाथ में एक छड़ी रहती है। शिव के इस अवतार को महाकालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें दंडाधिपति भी कहते हैं।

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