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Shani Dev Janm Katha: क्यों पढ़नी चाहिए शनि देव के जन्म की कथा, क्या है शनि आरती

Shani Katha: हर साल ज्येष्ठ अमावस्या को उत्तर भारत में शनि जयंती मनाई जाती है, जबकि दक्षिण भारत में वैशाख अमावस्या के कारण शनि जयंती मनाई जाती है। लेकिन क्या आपको पता है शनि देव के जन्म की कथा और शनि देव की आरती।

भोपालJun 18, 2024 / 07:04 pm

Pravin Pandey

shani janm katha

शनि जन्म की कथा

क्यों पढ़नी चाहिए शनि देव के जन्म कथा

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शनि देव कर्मफलदाता और दंडाधिकारी हैं। ये अपने कर्तव्य से डिगते नहीं। इसमें वह अपने पराए और संबंधों का भेद भी नहीं करते। अच्छा कर्म करने वाले व्यक्ति को वह निश्चित रूप से अच्छा फल देते हैं और बुरा कर्म करने वाले व्यक्ति को निश्चित रूप से बुरा फल देते हैं। इसके अलावा ग्रह रूप में ये रंक को राजा और राजा को रंक भी बना देते हैं। पूजा पाठ भी अच्छा कार्य है, इससे कोई व्यक्ति शनि देव की पूजा के रूप में अच्छा कार्य करता है तो शनि देव उसका भी अच्छा फल देते हैं।

इसके अलाव शनि देव के जन्म कथा में उनके दायित्वों और कर्तव्य के प्रति निष्ठा, इसके साथ ही लोगों से इनकी अपेक्षा का संकेत मिलता है। इसके अलावा शनि देव के व्यक्तित्व के विकास की झलक मिलती है। इसलिए शनि देव की जन्म कथा सभी को पढ़नी चाहिए।

शनि देव के जन्म की कथा (Shani Dev Janm Katha )

भगवान शनिदेव की जन्म कथा का धार्मिक ग्रंथों में अलग-अलग वर्णन मिलता है। कुछ ग्रंथों में शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन तो कुछ ग्रंथों में शनिदेव का जन्म भाद्रपद शनि अमावस्या के दिन माना जाता है। वहीं कैलेंडर में अंतर से दक्षिण भारत में यह वैशाख अमावस्या के दिन ही मना लिया जाता है।

एक कथा के अनुसार शनि देव का जन्म ऋषि कश्यप के अभिभावकत्व यज्ञ से हुआ था, लेकिन स्कंदपुराण में शनि देव के पिता का नाम सूर्य और माता का नाम छाया बताया गया है। शनि देव की माता का नाम संवर्णा भी बताया जाता है। आइये जानते हैं पूरी कथा..
शनिदेव के जन्म की कहानी के अनुसार राजा दक्ष की कन्या संज्ञा (कुछ जगह देवशिल्पी विश्वकर्मा को इनका पिता बताया जाता है) का विवाह सूर्य देव से हुआ था। संज्ञा सूर्यदेव के तेज से परेशान रहती थीं, इससे वह सूर्य देव की अग्नि से बचने का मार्ग तलाश रहीं थीं। इस बीच दिन पर दिन बीत रहे थे, तब तक संज्ञा ने वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना नाम की तीन संतानों को जन्म दिया।

एक दिन संज्ञा ने फैसला किया कि वे तपस्या कर सूर्य देव के तेज को सहने में सक्षम बनेंगी, लेकिन बच्चों के पालन में कोई दिक्कत न आए और सूर्यदेव को उनके फैसले की भनक न लगे इसके लिए संज्ञा ने अपने तप से अपनी ही तरह की एक महिला को पैदा किया और उसका नाम संवर्णा रखा। यह संज्ञा की छाया की तरह थी इसलिए इनका नाम छाया भी हुआ। संज्ञा छाया को बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी देकर तप के लिए चली गईं और यह राज किसी और को पता न चले यह निर्देश भी दे दिया।

संवर्णा के संज्ञा की छाया होने से सूर्यदेव के तेज से परेशानी नहीं होती थी। इस बीच संवर्णा ने भी सूर्यदेव की तीन संतानों मनु, शनि देव और भद्रा (तपती) को जन्म दिया। कहा जाता है जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया भगवान शिव का कठोर तप कर रहीं थीं। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रही संतान यानी शनिदेव पर भी पड़ा। इसके कारण शनिदेव का जन्म हुआ तो उनका रंग काला था। यह रंग देखकर सूर्यदेव को लगा कि यह तो उनका पुत्र नहीं हो सकता। उन्होंने छाया पर संदेह करते हुए उन्हें अपमानित किया।
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मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी, मां का अपमान देखकर उन्होंने क्रोधित होकर पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव काले पड़ गए और उनको कुष्ठ रोग हो गया। अपनी यह दशा देखकर घबराए हुए सूर्यदेव भगवान शिव की शरण में पहुंचे, तब भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास कराया। सूर्यदेव को अपने किए का पश्चाताप हुआ, उन्होंने क्षमा मांगी तब कहीं उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। लेकिन इस घटना के चलते पिता और पुत्र का संबंध हमेशा के लिए खराब हो गया।
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शनि देव की आरती (Shani Dev Ki Aarati)


जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव….
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव….

क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव….

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव, जय जय श्री शनि देव….
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
जय जय श्री शनि देव….

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