भगवान परशुराम के यदि वंशज को देखा जाए तो महाराज गाधि के एक मात्र पुत्री सत्यवती व पुत्र ऋषि विश्वामित्र थे। स्त्यवती का विवाह ऋचीक ऋषि से हुआ। उनके एक मात्र पुत्र यमदग्नि ऋषि थे। ऋषि यमदग्नि का विवाह रेणुका से हुआ और इनसे परशुराम का जन्म हुआ। परशुराम का पृथ्वी पर अवतार अक्षय तृतीय के दिन हुआ था। ये भगवान विष्णु के छठे अवतार भी माने जाते थे। परशुराम के गुरू भगवान शिव थे। उन्हीं से इन्हे फरसा मिला था।
महर्षि यमदग्नि जमैथा अब जौनपुर स्थित अपने आश्रम पर तपस्या कर रहे थे मगर आसुरी प्रवृत्ति के राजा कीर्तिवीर ( जो आज केरार वीर हैं) उन्हें परेशान करता था। मान्यताओं के अनुसार यमदग्नि ऋषि तमसा नदी (आजमगढ़) गए, जहां भृगु ऋषि रहते थे। उनसे सारी बात बताई, तो भृगु ऋषि ने उनसे कहा कि आप अयोध्या जाइयें। वहां पर राजा दशरथ के दो पुत्र राम व लक्ष्मण हैं। वे आपकी पूरी सहायता करेगें।
यमदग्नि अयोध्या गए और राम लक्ष्मण को अपने साथ लाए। राम व लक्ष्मण ने कीर्तिवीर को मारा और गोमती नदी में स्नान किया तभी से इस घाट का नाम राम घाट हो गया। यमदग्नि ऋषि बहुत क्रोधी थे। परशुराम पिता भक्त थे। एक दिन उनके पिता ने आदेश दिया कि अपनी मां रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दो। परशुराम ने तत्काल अपने फरसे से मां का सिर काट दिया, तो यमदग्नि बोले क्या वरदान चाहते हो। परशुराम ने कहा कि यदि आप वरदान देना चाहते हैं, तो मेरी मां को जिन्दा कर दीजिए। यमदग्नि ऋषि ने तपस्या के बल पर रेणुका को पुन: जिन्दा कर दिया। जीवित होने के बाद माता रेणुका ने कहा कि परशुराम तूने अपने मां के दूध का कर्ज उतार दिया। इस प्रकार पूरे विश्व में परशुराम ही एक ऐसे हैं जो मातृ व पितृ ऋण से मुक्त हो गए हैं।
परशुराम ने तत्कालीन आसुरी प्रवृत्ति वाले क्षत्रियों का ही विनाश किया था। यदि वे सभी क्षत्रियों का विनाश चाहते तो भगवान राम को अपना धनुष न देते, यदि वे धनुष न देते तो रावण का वध न होता। परशुराम में शस्त्र व शास्त्र का अद्भुत समन्वय मिलता है। कुल मिलाकर देखा जाय तो जौनपुर के जमैथा में उनकी माता रेणुका, बाद में अखण्डो, अब अखड़ो देवी का मन्दिर आज भी मौजूद है जहां लोग पूजा अर्चना करते है।