हनुमान चालीसा पाठ से संकट दूर होता है। इस शक्तिशाली प्रार्थना से हनुमानजी भी प्रसन्न होते हैं। इसके नियमित पाठ से व्यक्ति सभी प्रकार के भय से दूर होता है। हनुमान जयंती पर जानते हैं हनुमान चालीसा की किन छपाई त्रुटियों को दूर करने की जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने (Hanuman Chalisa Path Questioned by jagadguru rambhadrachary) सलाह दी है।
यहां पढ़ें पूरी हनुमान चालीसा
दोहा छंद
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन–कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई छंद
जय हनुमान ज्ञान गुनसागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
दोहा छंद
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन–कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई छंद
जय हनुमान ज्ञान गुनसागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र अउ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै।।
शंकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
शंकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे।।
लाय संजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाए।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे।।
लाय संजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाए।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस-कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।। तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गए अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
सनकादिक ब्रादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।। तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गए अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हरी सरना। तुम रक्षक काहूं को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
सब सुख लहै तुम्हरी सरना। तुम रक्षक काहूं को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस-बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को भावै। जनम जनम के दु:ख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि–भक्त कहाई।।
साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस-बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को भावै। जनम जनम के दु:ख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि–भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई।।
संकट कटै मिटे सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गौसाईं। वृपा करहु गुरुदेव की नाईं।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहिं बंदि महासुख होई।
संकट कटै मिटे सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गौसाईं। वृपा करहु गुरुदेव की नाईं।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहिं बंदि महासुख होई।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।। दोहा छंद
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहुं सुर भूप।। ये भी पढ़ेंः Hauman Janmotsav: आज के दिन को हनुमान जन्मोत्सव कहें या जयंती, जानें दोनों का फर्क
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।। दोहा छंद
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहुं सुर भूप।। ये भी पढ़ेंः Hauman Janmotsav: आज के दिन को हनुमान जन्मोत्सव कहें या जयंती, जानें दोनों का फर्क
अकबर से जुड़ा हनुमान चालीसा का किस्सा एक घटना के अनुसार एक बार अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास को अपनी सभा में बुलया। यहां अकबर ने तुलसीदासजी से कहा कि उसे भी भगवान राम से मिलाओ। तब तुलसीदासजी ने कहा कि भगवान श्रीराम सिर्फ अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। इससे नाराज अकबर ने उन्हें कारागार में डलवा दिया।
किंवदंती है कि कारागार में ही तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा लिखना शुरू किया और जब हनुमान चालीसा लिखे जाने का काम पूरा हुआ तो फतेहपुर सीकरी को बंदरों ने घेर लिया। अकबर की सेना बंदरों के प्रकोप को रोकने में सफल नहीं हुई तो किसी मंत्री की सलाह पर अकबर ने तुलसीदास को कारागार से मुक्त किया। इसके बाद बंदर क्षेत्र छोड़कर चले गए।
इसलिए सुर्खियों में है हनुमान चालीसा इधर, हनुमान चालीसा एक बार फिर सुर्खियों में है। इसकी वजह है तुलसी पीठाधीश्वर जगदगुरु रामभद्राचार्य ने इन दिनों हनुमान चालीसा पाठ में गलतियां की जा रहीं हैं। इसकी वजह है छपाई की गलती। उन्होंने हनुमान चालीसा पाठ में इन दिनों की जा रही चार अशुद्धियों को बताया है, उनका कहना है कि इन दिनों एक चौपाई में शंकर सुमन केसरी नंदन…कहा जा रहा है, उनका कहना है इसे शंकर स्वयं केसरी नंदन पढ़ना चाहिए। क्योंकि हनुमानजी को शंकर का पुत्र बोला जाना ठीक नहीं है, क्योंकि हनुमानजी शंकरजी के ही अवतार थे।
इसके अलावा उन्होंने सब पर राम तपस्वी राजा को भी गलत बताया है.. और इसकी जगह सब पर राम राज फिर ताजा पढ़ने की सलाह दी है। उन्होंने राम रसायन तुम्हरे पासा सदो रहो रघुपति के दासा की जगह सादर रहो रघुपति के दासा पढ़ने की सलाह दी है।