शनि देव से जुड़ी कथा
एक अन्य कथा के अनुसार विवाह के बहुत दिनों बाद तक संतान न होने के कारण पार्वतीजी ने श्रीकृष्ण का व्रत किया और उसके बाद गणेशजी को उत्पन्न किया। इसी बीच शनि देव बालक गणेश को देखने आए और उनकी दृष्टि पड़ने से गणेशजी का सिर कटकर गिर गया। इससे माता पार्वती क्रुद्ध हो गईं तो विष्णुजी ने दोबारा उनके शीश की जगह हाथी का सिर जोड़ दिया।
गणेश कैसे बने एकदंत
मान्यता है कि एक बार परशुरामजी शिव-पार्वती के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत गए, उस समय शिव-पार्वती निद्रा में थे और गणेशजी बाहर पहरा दे रहे थे। इससे उन्होंने परशुराम को रोक दिया। इस पर विवाद हुआ और अंततः परशुराम और गणेश में युद्ध छिड़ गया। इस पर परशुराम जी ने अपने परशु से उनका एक दांत काट डाला। इसलिए गणेशजी ‘एकदंत’ कहलाने लगे।ये भी पढ़ेंः Shree Ganesh Mantra: शीघ्र फल देने वाले हैं ये श्रीगणेश मंत्र, समस्या के अनुसार करें जाप
गणेशजी से जुड़े तथ्य और महत्व
1. गणनायक गणेश को प्रथम पूज्य का दर्जा प्राप्त है। इसलिए कोई भी पूजा या अनुष्ठान हो या किसी देवता की आराधना की शुरुआत, सबसे पहले भगवान गणपति का स्मरण, उनका विधिवत पूजन किया जाता है। इनकी पूजा के बिना कोई भी मांगलिक कार्य को शुरू नहीं किया जाता है। इसीलिए किसी भी कार्यारम्भ के लिए ‘श्री गणेश’ मुहावरा जैसा बन गया है। शास्त्रों में इनकी पूजा सबसे पहले करने का स्पष्ट आदेश है।2. गणेशजी की पूजा वैदिक और अति प्राचीन काल से की जाती रही है। गणेशजी वैदिक देवता हैं क्योंकि ऋग्वेद-यजुर्वेद आदि में गणपति के मन्त्रों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
3. शिवजी, विष्णुजी, दुर्गाजी, सूर्यदेव के साथ-साथ गणेशजी का नाम हिंदू धर्म के पांच प्रमुख देवों (पंच-देव) में शामिल है।
4. ‘गण’ का अर्थ है, वर्ग, समूह, समुदाय और ‘ईश’ का अर्थ है स्वामी। शिवगणों और देवगणों के स्वामी होने के कारण इन्हें ‘गणेश’ कहते हैं।
5. शिवजी को गणेशजी का पिता, पार्वतीजी को माता, कार्तिकेय (षडानन) को भ्राता, ऋद्धि-सिद्धि (प्रजापति विश्वकर्मा की कन्याएं) को पत्नी, क्षेम और लाभ को गणेशजी का पुत्र माना गया है।
6. श्री गणेशजी के बारह प्रसिद्ध नाम शास्त्रों में बताए गए हैं; जो इस प्रकार हैं: 1. सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्ण, 5. लम्बोदर, 6. विकट, 7. विघ्नविनाशन, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचंद्र, 12. गजानन।
7. मान्यता के अनुसार गणेशजी ने महाभारत का लेखन-कार्य भी किया था। भगवान वेदव्यास जब महाभारत की रचना का विचार कर रहे थे तो उन्हें उसे लिखवाने की चिंता हुई। इस पर ब्रह्माजी ने उनसे कहा कि यह कार्य गणेशजी से कराएं।
8. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ‘ॐ’ को साक्षात गणेशजी का स्वरूप माना गया है। जिस प्रकार प्रत्येक मंगल कार्य से पहले गणेश-पूजन होता है, उसी प्रकार प्रत्येक मन्त्र से पहले ‘ॐ’ लगाने से उस मन्त्र का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
9. चंद्रमा को विनायक के श्राप के कारण गणेश चतुर्थी के दिन जो व्यक्ति चंद्रमा का दर्शन करता है, उसे कलंक लगता है। इसलिए इस दिन को कलंक चौथ भी कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण को भी स्यामंतक मणि चुराने का झूठा कलंक लगा था। बाद में उन्होंने गणेश चतुर्थी व्रत किया और दोष मुक्त हुए।
10. मंगलवार को गणेश चतुर्थी पड़ने पर इसे अंगारक चतुर्थी कहते हैं। इस दिन व्रत करने से सभी पापों का शमन होता है, यदि रविवार को गणेश चतुर्थी पड़े तो यह और भी शुभ फलदायक हो जाती है।
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