निर्धारित समय में हेर-फेर करते रहने वाले बहुधा लज्जा एवं आत्मग्लानि के भागी बनते हैं। किसी को बुलाकर समय पर न मिलना, समाजों, सभाओं, गोष्ठियों अथवा आयोजनों के अवसर पर समय से पूर्व अथवा पश्चात् पहुंचना, किसी मित्र से मिलने जाने का समय देकर उसका पालन न करना आदि की शिथिलता सभ्यता की परिधि में नहीं मानी जा सकती है। देर-सवेर कक्षा अथवा कार्यालय पहुंचने वाला विद्यार्थी तथा कर्मचारी भर्त्सना का भागी बनता है।
समय का ध्यान न रखने वाले पछताते हैं
‘लेट लतीफ’ लोगों की ट्रेन छूटती, परीक्षा चूकती, लाभ डूबता डाक रुक जाती, बाजार उठ जाता, संयोग निकल जाते और अवसर चूक जाते हैं। इतना ही नहीं व्यावसायिक क्षेत्र में तो जरा-सी देर दिवाला तक निकाल देती हैं। समय पर बाजार न पहुंचने पर माल दूसरे लोग खरीद ले जाते हैं। देर हो जाने से बैंक बन्द हो जाता है और भुगतान रुक जाता है। समय चुकते ही माल पड़ा रहता है। असामयिक लेन-देन तथा खरीद-फरोख्त किसी भी व्यवसायी को पनपने नहीं देती।
भय ही दु:ख का कारण है- भगवान बुद्ध
निर्धारित काम को समय पर करना
समय का पालन मानव-जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण संयम है। समय पर काम करने वालों के शरीर चुस्त, मन नीरोग तथा इन्द्रियां तेजस्वी बनी रहती हैं। निर्धारण के विपरीत काम करने से मन, बुद्धि तथा शरीर काम तो करते हैं किन्तु अनुत्साहपूर्वक। इससे कार्य में दक्षता तो नहीं ही आती है, साथ ही शक्तियों का भी क्षय होता है। किसी काम को करने के ठीक समय पर शरीर उसी काम के योग्य यन्त्र जैसा बन जाता है। ऐसे समय में यदि उससे दूसरा काम लिया जाता है, तो वह काम लकड़ी काटने वाली मशीन से कपड़े काटने जैसा ही होगा।
समय-संयम सफलता
क्रम एवं समय से न काम करने वालों का शरीर-यन्त्र अस्त-व्यस्त प्रयोग के कारण शीघ्र ही निर्बल हो जाता है और कुछ ही समय में वह किसी कार्य के योग्य नहीं रहता। समय-संयम सफलता की निश्चित कुन्जी है। इसे प्राप्त करना प्रत्येक बुद्धिमान का मानवीय कर्त्तव्य है।
*************