ज्ञानी मनुष्य भले ही दलदल में रहे, लेकिन अनुभव परमात्मा का करता है : भगवान महावीर
शहरी पढाई लिखाई के घमंड में उन्होंने गांव वालों को चुनौती दे दी कि हम भी नाचेंगे तो बारिश होगी और अगर हमारे नाचने से नहीं हुई तो उस साधु के नाचने से भी नहीं होगी। फिर क्या था अगले दिन सुबह-सुबह ही गांव वाले उन लड़कों को लेकर साधु की कुटिया पर पहुंचे। साधु को सारी बात बताई गयी, फिर लड़कों ने नाचना शुरू किया, आधे घंटे बीते और पहला लड़का थक कर बैठ गया पर बादल नहीं दिखे, कुछ देर में दूसरे ने भी यही किया और एक घंटा बीतते-बीतते बाकी दोनों लड़के भी थक कर बैठ गए, पर बारिश नहीं हुई।
कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है, ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है- स्वामी विवेकानंद
अब साधु की बारी थी, उसने नाचना शुरू किया, एक घंटा बीता, बारिश नहीं हुई, साधु नाचता रहा- दो घंटा बीता बारिश नहीं हुई, पर साधु तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था, धीरे-धीरे शाम ढलने लगी कि तभी बादलों की गड़गडाहत सुनाई दी और ज़ोरों की बारिश होने लगी। लड़के दंग रह गए और तुरंत साधु से क्षमा मांगी और पूछा- ”बाबा भला ऐसा क्यों हुआ कि हमारे नाचने से बारिश नहीं हुई और आपके नाचने से हो गयी?
मोह ही कष्ट का सबसे प्रमुख कारण है- आचार्य श्रीराम शर्मा
साधु ने उत्तर दिया– ”जब मैं नाचता हूं तो दो बातों का ध्यान रखता हूं, पहली बात मैं ये सोचता हूं कि अगर मैं नाचूंगा तो बारिश को होना ही पड़ेगा और दूसरी ये कि मैं तब तक नाचूंगा जब तक कि बारिश न हो जाये। सफलता पाने वालों में यही गुण विद्यमान होता है, वो जिस चीज को करते हैं उसमे उन्हें सफल होने का पूरा विश्वास होता है और वे तब तक उस चीज को करते हैं जब तक कि उसमे सफल ना हो जाएं। इसलिए यदि हमें सफलता हांसिल करनी है तो उस साधु की तरह ही अपने ऊपर पूरा विश्वास होना चाहिए। “विश्वास जीवन की शक्ति है, इसका अभाव अज्ञान है और जीवन में वे ही विजयी हो सकते है, जिन्हें विश्वास है कि वे विजयी होंगे।
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