धर्मराज ने चित्रगुप्त से उसके पाप-पुण्य का लेखा देखने को कहा। बही देखने से पता चला कि चोर ने अपने जीवन में एक दिन एक भूखे भिखारी को भोजन कराया था। उस पुण्य के परिणाम स्वरूप उसे एक घंटे के लिए स्वर्ग ले जाकर उसकी इच्छापूर्ति करने का विधान था। जब स्वर्ग में चोर से उसकी कोई इच्छा बताने को कहा गया तो वह विचार करके बोला- “मुझे एक घंटे के लिए इंद्रासन चाहिए।
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चोर की इच्छापूर्ति के लिए देवराज इंद्र ने अपना सिहासन त्याग दिया और एक घंटे के लिए उसे स्वर्ग का राज्य दे दिया गया। इंद्रासन पर विराजते ही चोर का विवेक जाग उठा। उसने सोचा- ‘जब एक भूखे को खाना खिलाने मात्र से मुझे एक घंटे के लिए इंद्रासन मिल सकता है तो कोई ऐसा शुभ कार्य करना चाहिए जिसके प्रताप से मैं सदैव स्वर्ग का सुख भोग सकूं।
विचार मंथन : दीपावली के दीपक की तरह जलाएं अपने अंतरमन का दीपक- डॉ प्रणव पंड्या
उसने समस्त देवताओं तथा ऋषि-मुनियों का श्रद्धापूर्वक यथायोग्य सत्कार किया। उसके बाद धन-संपत्ति के स्वामी कुबेर को बुलाकर सभी अमूल्य संपत्ति दान करने का निर्देश दिया। उसने ऋषि वशिष्ठ को कामनापूर्ति करने वाली सुंदर कामधेनु दे दी। ब्रह्मर्षि विश्वामित्र को आद्वितीय अश्व और ऋषि अगस्त्य को ऐरावत हाथी भेंट कर दिया। गलत काम करने वाले लोग हमेशा दंड से ही नहीं सुधरते, उनके किसी छोटे से अच्छे कार्य की प्रशंसा से भी उन्हें अच्छा बनने की प्रेरणा मिल सकती है।
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