मगध राज्य में एक सोनापुर नाम का गांव था। उस गांव के लोग शाम होते ही अपने घरों में आ जाते थे। और सुबह होने से पहले कोई कोई भी घर के बाहर कदम भी नहीं रखता था। इसका कारण डाकू अंगुलीमाल था। अंगुलिमाल एक बहुत बड़ा डाकू था। वह लोगों को मारकर उनकी उंगलियां काट लेता था और फिर उनकी माला बनाकर उसे गले में पहनता था। इसलिए लोगों ने उसका नाम यही रख दिया। लोगों को लूट लेना और उनकी जान ले लेना उसके और उसके आदमियों का बाएं हाथ का खेल था। लोग उस से डरते थे और उसका नाम लेने से लोगो को प्राण सूख जाते थे।
बुद्ध रुक गए और मुस्कुराकर बोले
एक बार भगवान् बुद्ध उधर से होकर निकले उपदेश देते हुए वो लोगों के पास पहुंचे तो उन्हें लोगों ने कहा आप यंहा से चले जाएं क्योंकि आप यंहा सुरक्षित नहीं है यंहा एक डाकू है जो किसी के आगे नहीं झुकता तो इस पर भी भगवान् बुद्ध ने अपना इरादा नहीं बदला और वो बेफिक्री से इधर उधर घूमने लगे। डाकू को इसका पता चला तो वो झुंझलाकर उनके पास आया।
बुद्ध को आते देख अंगुलिमाल हाथों में तलवार लेकर खड़ा हो गया, पर बुद्ध उसकी गुफा के सामने से निकल गए उन्होंने पलटकर भी नहीं देखा। अंगुलिमाल उनके पीछे दौड़ा, पर दिव्य प्रभाव के कारण वो बुद्ध को पकड़ नहीं पा रहा था। थक हार कर उसने कहा- “रुको” बुद्ध रुक गए और मुस्कुराकर बोले- मैं तो कब का रुक गया पर तुम कब ये हिंसा रोकोगे।
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तुम्हें मुझसे डर नहीं लगता
अंगुलिमाल ने कहा- सन्यासी तुम्हें मुझसे डर नहीं लगता। सारा मगध मुझसे डरता है। तुम्हारे पास जो भी माल है निकाल दो वरना, जान से हाथ धो बैठोगे। मैं इस राज्य का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हूं। बुद्ध जरा भी नहीं घबराये और बोले- मैं ये कैसे मान लूं कि तुम ही इस राज्य के सबसे शक्तिशाली इन्सान हो। तुम्हें ये साबित करके दिखाना होगा। अंगुलिमाल बोला बताओ- “कैसे साबित करना होगा?”।
भगवान बुद्ध ने उससे कहा क्यों भाई सामने के पेड़ से चार पत्ते तोड लाओगे। उसके लिए यह काम कोन सा मुश्किल था वह भाग कर गया और चार पत्ते तोड़ लाया तो बुद्ध ने उस से कहा कि क्या अब तुम इन्हें जहां से तोड़ कर लाये हो क्या उसी जगह इन्हें वापिस लगा सकते हो इस पर डाकू ने कहा यह तो संभव ही नहीं है। तभी भगवान बुद्ध बोले– जब तुम इतनी छोटी सी चीज़ को वापस नहीं जोड़ सकते तो तुम सबसे शक्तिशाली कैसे हुए?
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तोड़ो नहीं जोड़ो
बुद्ध ने कहा ” भैया जब जानते हो कि टूटा हुआ जुड़ता नहीं है तो फिर तोड़ने का काम ही क्यों करते हो, यदि तुम किसी चीज़ को जोड़ नहीं सकते तो कम से कम उसे तोड़ो मत, यदि किसी को जीवन नहीं दे सकते तो उसे मृत्यु देने का भी तुम्हें कोई अधिकार नहीं है। बुद्ध की ये बात सुनते ही उसकी बोध हो गया और वह ये गलत धंधा छोड़ कर बुद्ध की शरण में आ गया।
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