धर्म और अध्यात्म

इस गंगा घाट पर भूत-प्रेत खेलते हैं होली, जानें क्या है महत्व

भारत चमत्कारों की धरती है। यहां तमाम जगहों को लेकर मान्यताएं हैं। ऐसी ही मान्यता एक प्राचीन शहर के गंगा घाट से जुड़ी है, जहां भूत-प्रेत होली खेलते हैं। आइये जानते हैं इस गंगा घाट का महत्व…

भोपालMay 16, 2024 / 03:17 pm

Pravin Pandey

चिता भस्म की होली मणिकर्णिका घाट

मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है चिता भस्म या मसान की होली

शिव की नगरी काशी जिसे बनारस या वाराणसी भी कहते हैं। यहां पर देश का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध श्मशान घाट है मणिकर्णिका घाट। यहां हर समय, हर पल किसी ना किसी की चिता जलती ही रहती है। यहां रंगभरनी एकादशी के अगले दिन अर्थात फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन चिता भस्म होली खेली जाती है। मान्यता है कि इस दिन बम-भोले के सभी भक्त उनकी आज्ञा लेकर चिता भस्म होली खेलते हैं।

क्या है चिता भस्म से होली खेलने की कथा

मान्यता हैं कि माता सती के आत्म-दाह के बाद भगवान शिव चिर साधना में चले गए थे। इसके बाद कामदेव ने उन्हें साधना से जगाया, जिससे नाराज शिवजी ने तीसरा नेत्र खोलकर भस्म कर दिया। बाद में माता सती ने माता पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया। कालांतर में माता पार्वती के साथ शिवजी का पुनर्विवाह हुआ। इसके बाद रंगभरी एकादशी के दिन शिवजी माता पार्वती को पहली बार उनके ससुराल काशी नगरी लेकर आए थे। मान्यता है कि इस अवसर पर काशी नगरी वालों ने शिव-पार्वती के साथ रंगों की होली खेली, लेकिन शिवजी अपने गणों (भूत-प्रेत, अघोरी, नागा साधु, इत्यादि) के साथ होली नहीं खेल पाए।

इसके लिए शिवजी अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर गए और जली हुई चिताओं की राख अपने शरीर पर मल ली। इसके बाद उन्होंने अपने गणों के साथ चिताओं की भस्म से जमकर होली खेली। मान्यता हैं कि आज भी शिवजी रंगभरी एकादशी के अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर अदृश्य रूप में आते हैं और गणों के साथ चिता-भस्म की होली खेलते हैं।
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कैसे शुरू होती है परंपरा

दरअसल, रंगभरी एकादशी के दिन शिवजी और माता पार्वती को पालकी में बिठाकर पूरे शहर में उनकी यात्रा निकाली जाती है और अगले दिन सभी भगवान शिव के ही रूप बाबा विश्वनाथ से आज्ञा पाकर मणिकर्णिका घाट पर पहुंचते हैं और चिता भस्म की होली खेलते हैं। मान्यता है इसमें भगवान शिव के गण, भूत प्रेत अदृश्य रूप में और अघोरी, नागा साधु भी होली खेलते हैं।

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