क्या है चिता भस्म से होली खेलने की कथा
मान्यता हैं कि माता सती के आत्म-दाह के बाद भगवान शिव चिर साधना में चले गए थे। इसके बाद कामदेव ने उन्हें साधना से जगाया, जिससे नाराज शिवजी ने तीसरा नेत्र खोलकर भस्म कर दिया। बाद में माता सती ने माता पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया। कालांतर में माता पार्वती के साथ शिवजी का पुनर्विवाह हुआ। इसके बाद रंगभरी एकादशी के दिन शिवजी माता पार्वती को पहली बार उनके ससुराल काशी नगरी लेकर आए थे। मान्यता है कि इस अवसर पर काशी नगरी वालों ने शिव-पार्वती के साथ रंगों की होली खेली, लेकिन शिवजी अपने गणों (भूत-प्रेत, अघोरी, नागा साधु, इत्यादि) के साथ होली नहीं खेल पाए।इसके लिए शिवजी अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर गए और जली हुई चिताओं की राख अपने शरीर पर मल ली। इसके बाद उन्होंने अपने गणों के साथ चिताओं की भस्म से जमकर होली खेली। मान्यता हैं कि आज भी शिवजी रंगभरी एकादशी के अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर अदृश्य रूप में आते हैं और गणों के साथ चिता-भस्म की होली खेलते हैं।
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