अमृतकाल 2.38 पीएम से 4.19 पीएम
सर्वार्थ सिद्धि योग 6.09 एएम से 8.56 पीएम तक
विजय योग 2.44 पीएम से 3.35 पीएम
निशिता मुहूर्त 4 मई 12.13 एएम से 12.57 एएम तक
रवि योग तीन मई को 8.56 पीएम से चार मई 6.09 एएम
ऐसे करना चाहिए प्रदोष व्रत, जानिए प्रदोष व्रत पूजा विधि
प्रयागराज के आचार्य पं. प्रदीप पाण्डेय के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन प्रातः स्नान ध्यान के बाद भगवान शिव की षोडषोपचार पूजा करनी चाहिए। इस दिन, दिन में सिर्फ फलाहार कर शाम को प्रदोषकाल में पूजा के बाद व्रत का पारण करना चाहिए।
1. सूर्योदय से पहले उठें और नित्यकर्म के बाद सफेद रंग के कपड़े पहनें
2. पूजाघर को साफ और शुद्ध करें।
3. गाय के गोबर से लीप कर मंडप तैयार करें।
4. मंडप के नीचे पांच अलग-अलग रंगों से रंगोली तैयार करें।
5. उत्तर पूर्व दिशा में मुंह कर बैठे और भगवान शिव और माता पार्वती की षोडशोपचार पूजा करें
वैशाख शुक्ल त्रयोदशी से शुरू कर सकते हैं व्रत
आचार्य प्रदीप के अनुसार जो व्यक्ति प्रदोष व्रत शुरू करना चाह रहे हैं, वो किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को व्रत की शुरुआत कर सकते हैं। लेकिन सावन और कार्तिक महीने में व्रत शुरू करना श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष व्रत की शुरुआत पूजा अर्चना और संकल्प लेकर की जाती है।
कथाओं के अनुसार एक शाप के कारण चंद्रदेव को क्षय रोग हो गया था, उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट हो रहा था। भगवान शिव ने उन्हें इस कष्ट से त्रयोदशी के दिन ही मुक्त किया था। इससे इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा।
भूलकर भी न करें ये गलती
1. प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है।
2. इस दिन या तो पूर्ण उपवास या फलाहार करें, यदि ऐसा नहीं कर सकते तो भी प्रदोष व्रत में लाल मिर्च, अन्न, चावल और सादा नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
3. शिवलिंग की कभी पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए, परिक्रमा के दौरान जिस जगह से दूध या जल बह रहा है वहां रूक जाएं और वहां से वापस लौट जाएं।
4. शिवलिंग पर सिंदूर और रोली नहीं चढ़ाना चाहिए। ऐसा अच्छा नहीं माना जाता।
5. शिवलिंग पर दूध, दही, शहद या कोई भी वस्तु चढ़ाने के बाद जल जरूर चढ़ाएं। तभी जलाभिषेक पूर्ण माना जाता है।
6. शिवजी का दूध से अभिषेक करने के लिए तांबे के कलश का प्रयोग न करें, क्योंकि ऐसा करने से दूध संक्रमित हो जाता है और चढ़ाने योग्य नहीं रह जाता।