धर्म और अध्यात्म

Budh Mahadasha – बुध महादशा में कब चमकेगी किस्मत, जानिए अंतरदशाओं का प्रभाव

आमतौर पर बुध की महादशा में भी अधिकांश अच्छे परिणाम मिलते हैं पर कुंडली में इस ग्रह की स्थिति के अनुसार कुछ अशुभ फल भी मिल सकते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बुध जिस ग्रह के साथ हो, उसी के अनुरूप भी फल देते हैं। यही कारण है कि बुध की महादशा में अन्य ग्रहों की अंतरदशा का बड़ा प्रभाव देखा जाता है।

Nov 28, 2023 / 06:23 pm

deepak deewan

बुध की महादशा

नवग्रहों में बुध को राजकुमार की संज्ञा दी गई है। महर्षि पाराशर के अनुसार बुध को सौम्य और शुभ ग्रह माना गया है। आमतौर पर बुध की महादशा में भी अधिकांश अच्छे परिणाम मिलते हैं पर कुंडली में इस ग्रह की स्थिति के अनुसार कुछ अशुभ फल भी मिल सकते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बुध जिस ग्रह के साथ हो, उसी के अनुरूप भी फल देते हैं। यही कारण है कि बुध की महादशा में अन्य ग्रहों की अंतरदशा का बड़ा प्रभाव देखा जाता है।
बुध को बुद्धि, तर्क क्षमता, संचार कौशल का कारक ग्रह कहा गया है। बुध की महादशा 17 साल तक चलती है। इस दौरान कई बार लोगों की किस्मत चमक उठती है। हम आपको बुध की महादशा में सभी ग्रहों की अंतरदशा के शुभ अशुभ प्रभाव बताएंगे। सबसे पहले जानते हैं बुध की महादशा के अंतिम चरण के हाल। इस बार पढ़िए बुध दशा में राहु, गुरु और शनि की अंतरदशा का फल
राहु अंतरदशा- राहु शुभ हो तो इस अवधि में जातक की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। उसे अतुलनीय धन मिलता है, परम सुख लाभ प्राप्त होता है। चुनाव या राजनीति में कामयाबी मिलती है, मंत्री जैसे पद मिलते हैं, सरकार में सम्मान होता है। प्रतिष्ठित लोगों से मेल-मिलाप बढता है, उद्योग-व्यापार की वृद्धि, नौकरी में उन्नति मिलती है। राहु यदि अशुभ हो तो पत्नी, सन्तान तथा मित्रों से व्यर्थ में ही कलह होती है। किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिलती, नौकरी में पदोन्नति में विलंब होता, अधिकारी वर्ग नाराज होता है। पित्त वृद्धि, पेट दर्द, अंडकोष वृद्धि जैसे रोग हो सकते हैं।
बुध महादशा में राहु की अंतर्दशा दो वर्ष, छह माह, अठारह दिन की होती है। शुभ स्थिति में शुरुआत से ही अच्छे फल मिलने लगते हैं। कुछ जातकों को शुरु में कष्ट या परेशानियां आती हैं पर बाद में सुख मिलता है। किसी को अधिकतम मेहनत केपश्चात भी थोड़ा-सा फल देता है। तीन, छह व 11वें भाव का राहू सरकार से बार—बार उच्च लाभ दिलाता है। उच्चाधिकारियों की कृपा मिलती है। आर्थिक वृद्धि होती है लेकिन खर्च भी बहुत होता है। लग्न से आठवें या 12वें भाव का राहू कष्टकारक होता है। व्यापार चौपट हो सकती है। नौकरी या धन छिन जाता है, मित्र भी शत्रु हो जाते हैं।
बृहस्पति अंतरदशा- बृहस्पति शुभ हो तो जीवन ऐश्वर्यमय हो जाता है। जातक की बुद्धि सात्विक और निर्मल हो जाती है। ईश्वर में आस्था बढ़ जाती है, धर्म-कर्म, पूज़ा-पाठ में मन लगता है। विद्यार्थी वर्ग उच्च विद्या प्राप्त कर लेता है। विज्ञान व कानून विषयों में विशेष सफलता मिलती है। समाज में सम्मान बढता है। लाटरी आदि से अचानक धन प्राप्त होता है। बृहस्पति अशुभ हो तो जीवनसाथी से मतभेद बढ़ता है तथा पति या पत्नी वियोग भी होता है। अशुभ बृहस्पति की अंतरदशा में जातक के मन में बेचैनी बनी रहती है। प्रियजनों या मित्रों से व्यर्थ विवाद होता है तथा उच्चाधिकारियों का कोपभाजन बनना पड़ता है। बृहस्पति मारकेश हो तो मृत्युसम कष्ट होता है। पीलिया, स्वरभंग आदि से कष्ट मिलता है।
बुध महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा दो वर्ष, तीन माह, छह दिन की होती है। बृहस्पति की शुभ स्थिति से कारोबार, लेखन एवं प्रकाशन के काम में उच्च लाभ होता है। सरकारी नौकरी में विशेष लाभ होता है। जरा से प्रयास से अच्छी नौकरी मिल जाती है। बृहस्पति 6, 8 या 12वें भाव में हो या नीच का हो तो यह समय बहुत कष्टकारक साबित होता है। कारोबार खत्म होता है, नौकरी से हाथ धोना पड़ता है। जातक निर्णय नहीं कर पाते हैं।
शनि अंतरदशा- यह बुध की महादशा की आखिरी अंतरदशा होती है। शुभ शनि की अंतरदशा में जातक धर्म-कर्म में रम जाता है। किसी भी स्थिति में अवसादग्रस्त नहीं हो पाता। दीनहीन लोगों की सेवा सहायता करता है। कैरियर में विशेष उन्नति करता है। निम्न श्रेणी के लोगों से लाभ मिलता है। लोहा, कोयला, पीतल जैसी धातुओँ से अच्छा लाभ मिलता है। शनि अशुभ हो तो जातक का कहीं मन नहीं लगता। वह उदास और हो जाता है। संतान घर से भाग जाती है, जिससे मन को संताप पहुंचता है । देह कष्ट होता है तथा एकान्तवास की इच्छा होती है। सभी से मोहभंग हो जाता है, रोने को मन करता है।
बुध महादशा में शनि की अंतर्दशा दो वर्ष, आठ माह, नौ दिन की होती है। शनि 4, 8 या 12वें स्थान में हो तो बहुत बुरा भी हो सकता है। सब कुछ छीन सकता है। कुंडली में बुध अच्छा हो तो शनि के भी शुभ फल प्राप्त हो जाते हैं। उच्च राशि या स्वराशि का शनि हो तो समझिए कि चिंता के दिन समाप्त हुए। तीसरे, छठे, 11वें भाव का शनि भी अच्छा परिणाम देता है। मेहनत का पूरा फल प्राप्त होता है जिंदगी में नया उत्साह जाग जाता है। एक खास बात और है। आनेवाली केतू की दशा यदि शुभ फलदायक नहीं है तो बुध शनि की अंतरदशा भी आपको कंगाली के कगार पर खड़ा कर सकती है।
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