दुख से कैसे बचेंगेः भगवान गौतम बुद्ध ने कहा है कि यह संसार दुखमय है, संसार का कोई प्राणी नहीं है, जिसके पास कोई न कोई दुख हो। इसलिए एक सामान्य स्थिति है। दुख आपसे तभी दूर रहेगा, जब आप खुद को खुश रखने की कोशिश करेंगे। इसके लिए उन्होंने आष्टांगिक मार्ग (मध्यम मार्ग) यानी संतुलन का मार्ग बताया है।
दुख का कारणः भगवान गौतम बुद्ध का मानना है कि दुख का सबसे बड़ा कारण किसी चीज को पाने की इच्छा है, और यही इच्छा पूरी न होने पर दुख मिलता है और दुख अधिव हावी हो जाए तो मनुष्य अवसादग्रस्त हो जाता है। भगवान गौतम बुद्ध के अनुसार जिस व्यक्ति को किसी चीज की तृष्णा नहीं है तो उसे कोई दुख भी नहीं होगा। इसलिए किसी चीज को लेकर कोई उम्मीद ही नहीं करनी चाहिए।
दुख दूर करने के उपाय: तथागत के अनुसार समय स्थिर नहीं रहता, यह बदलता रहता है। इसलिए सुख और दुख भी आते-जाते रहते हैं, यह हमेशा नहीं रहेंगे। अगर दुख आ गया है तो दुख दूर करने के उपाय भी है। दुख के निवारण के लिए व्यक्ति को अष्टांगिक मार्ग अपनाना चाहिए और सन्मार्ग पर चलना चाहिए। इससे दुख दूर हो जाएगा।
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भगवान गौतम बुद्ध ने सभी मनुष्य के लिए मोक्ष को जरूरी बताया है। उन्होंने इसके लिए तीन सरल मार्ग बताए हैं पहला आष्टांग योग, दूसरा त्रिरत्न और तीसरा आष्टांगिक मार्ग। भगवान बुद्ध के अनुसार अभ्यास और जागृति के लिए समर्पित नहीं हैं तो आप कहीं भी नहीं पहुंच सकते। उन्होंने मोक्ष के लिए आष्टांगिक मार्ग को श्रेष्ठ बनाया है। यह जीवन को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाता है।
भगवान गौतम बुद्ध ने सभी मनुष्य के लिए मोक्ष को जरूरी बताया है। उन्होंने इसके लिए तीन सरल मार्ग बताए हैं पहला आष्टांग योग, दूसरा त्रिरत्न और तीसरा आष्टांगिक मार्ग। भगवान बुद्ध के अनुसार अभ्यास और जागृति के लिए समर्पित नहीं हैं तो आप कहीं भी नहीं पहुंच सकते। उन्होंने मोक्ष के लिए आष्टांगिक मार्ग को श्रेष्ठ बनाया है। यह जीवन को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाता है।
सम्यक मार्गः इसका तात्पर्य है जीवन के सुख और दुख का सही अवलोकन करें।
सम्यक संकल्पः भगवान बुद्ध के अनुसार जीवन में संकल्प का बड़ा महत्व है। यदि दुख से छुटकारा पाना है तो तय कर लें कि आर्य मार्ग पर चलना है।
सम्यक वाक : भगवान बुद्ध के अनुसरा जीवन में वाणी की पवित्रता और सत्य को अपनाना जरूरी है, यदि ऐसा नहीं करते तो दुख का आना तय है।
सम्यक कर्मांत : कर्म चक्र से छूटने के लिए आचरण की शुद्धि जरूरी है। आचरण की शुद्धि क्रोध, द्वेष और दुराचार का त्याग करने से होती है।
सम्यक संकल्पः भगवान बुद्ध के अनुसार जीवन में संकल्प का बड़ा महत्व है। यदि दुख से छुटकारा पाना है तो तय कर लें कि आर्य मार्ग पर चलना है।
सम्यक वाक : भगवान बुद्ध के अनुसरा जीवन में वाणी की पवित्रता और सत्य को अपनाना जरूरी है, यदि ऐसा नहीं करते तो दुख का आना तय है।
सम्यक कर्मांत : कर्म चक्र से छूटने के लिए आचरण की शुद्धि जरूरी है। आचरण की शुद्धि क्रोध, द्वेष और दुराचार का त्याग करने से होती है।
सम्यक आजीव : यदि आपने दूसरों का हक मारकर या अन्य किसी अन्यायपूर्ण उपाय से जीवन के साधन जुटाए हैं तो इसका परिणाम भी भुगतना होगा, इसीलिए न्यायपूर्ण जीविकोपार्जन आवश्यक है।
सम्यक व्यायाम : ऐसा प्रयत्न करें जिससे शुभ की उत्पत्ति और अशुभ का निरोध हो। जीवन में शुभ के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
सम्यक स्मृति : शारीरिक और मानसिक भोग-विलास की वस्तुओं से स्वयं को दूर रखने से चित्त एकाग्र होता है । एकाग्रता से विचार और भावनाएं स्थिर होकर शुद्ध बनी रहती हैं।
सम्यक समाधि : इन सात मार्ग के अभ्यास से चित्त की एकाग्रता से निर्विकल्प प्रज्ञा की अनुभूति होती है। यह समाधि ही धर्म के समुद्र में लगाई गई छलांग है।
गौतम बुद्ध के आर्य सत्य
भगवान गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्य बताए हैं, दुख, दुख समुदय (तृष्णा), निरोध (दुख का निवारण है), मार्ग (निवारण के मार्ग)। बुद्ध के अनुसार प्राणी जीवन भर दुख से ग्रस्त रहता है, जिसका कारण तृष्णा है। वह तृष्णा के साथ मरता है और फिर उसी की प्रेरणा से फिर जन्म लेता है। तृष्णा से दूर हो जाने से व्यक्ति का दुख दूर हो जाएगा और वह पुनर्जन्म नहीं लेगा। इसी निरोध की प्राप्ति का मार्ग आर्यसत्य आष्टांगिक मार्ग है। इसे सिद्ध करने पर जीव मुक्त हो जाता है।
भगवान गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्य बताए हैं, दुख, दुख समुदय (तृष्णा), निरोध (दुख का निवारण है), मार्ग (निवारण के मार्ग)। बुद्ध के अनुसार प्राणी जीवन भर दुख से ग्रस्त रहता है, जिसका कारण तृष्णा है। वह तृष्णा के साथ मरता है और फिर उसी की प्रेरणा से फिर जन्म लेता है। तृष्णा से दूर हो जाने से व्यक्ति का दुख दूर हो जाएगा और वह पुनर्जन्म नहीं लेगा। इसी निरोध की प्राप्ति का मार्ग आर्यसत्य आष्टांगिक मार्ग है। इसे सिद्ध करने पर जीव मुक्त हो जाता है।