डॉ. आंबेडकर की नजर में गरिमापूर्ण मानव जीवन के लिए क्या है जरूरी
भारत के संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बीआर आम्बेडकर बौद्ध धर्म की करुणा और मानवता के दृष्टिकोण से सर्वाधिक प्रभावित हुए थे। इसलिए उन्होंने कहा था कि मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए। डॉ. आम्बेडकर का मानना था कि जीवन लंबा होने की जगह महान होना चाहिए।
इन बातों को लेकर 13 अक्टूबर 1935 को उन्होंने घोषणा की कि वो हिंदू धर्म को छोड़ने का निर्णय ले चुके हैं। क्योंकि एक व्यक्ति के विकास के लिए करुणा, समानता और स्वतंत्रता की जरूरत होती है और जाति प्रथा के चलते हिंदू धर्म में रहते इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने अपने समर्थकों से कहा था कि सम्मानजनक जीवन चाहते हैं तो स्वयं की मदद करनी होगी और धर्म परिवर्तन ही रास्ता है।
भारत के संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बीआर आम्बेडकर बौद्ध धर्म की करुणा और मानवता के दृष्टिकोण से सर्वाधिक प्रभावित हुए थे। इसलिए उन्होंने कहा था कि मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए। डॉ. आम्बेडकर का मानना था कि जीवन लंबा होने की जगह महान होना चाहिए।
इन बातों को लेकर 13 अक्टूबर 1935 को उन्होंने घोषणा की कि वो हिंदू धर्म को छोड़ने का निर्णय ले चुके हैं। क्योंकि एक व्यक्ति के विकास के लिए करुणा, समानता और स्वतंत्रता की जरूरत होती है और जाति प्रथा के चलते हिंदू धर्म में रहते इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने अपने समर्थकों से कहा था कि सम्मानजनक जीवन चाहते हैं तो स्वयं की मदद करनी होगी और धर्म परिवर्तन ही रास्ता है।
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बौद्ध धर्म के तीन संदेश जिन्होंने बाबा साहेब को आकर्षित किया
बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर के अनुसार बौद्ध धर्म प्रज्ञा और करुणा प्रदान करता है और समता का संदेश देता है। इन तीनों के बिना मनुष्य अच्छा और सम्मानजनक जीवन नहीं जी सकता।
बौद्ध धर्म के तीन संदेश जिन्होंने बाबा साहेब को आकर्षित किया
बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर के अनुसार बौद्ध धर्म प्रज्ञा और करुणा प्रदान करता है और समता का संदेश देता है। इन तीनों के बिना मनुष्य अच्छा और सम्मानजनक जीवन नहीं जी सकता।
प्रज्ञाः अंधविश्वास और परलौकिक शक्तियों के खिलाफ समझदारी अर्थात तर्क किसी कसौटी को कसे बिना किसी चीज को न मानन।
करुणाः दुखियों और पीड़ितों के लिए प्रेम और संवेदना
समताः धर्म, जातिपाति, लिंग, ऊंच-नीच की सोच से अलग होकर हर मनुष्य को बराबर मानना।
इसलिए हिंदू धर्म के विचारों से दूर गए
डॉ. बीआर आंबेडकर समाज में दलितों की स्थिति, छुआछूत और भेदभाव से बहुत दुखी थे और उन्हें इसे दूर करने का हिंदू धर्म के तत्कालीन समाज में कोई आधार सूझ नहीं रहा था। उन्होंने वीर सावरकर और महात्मा गांधी समेत कई नेताओं के साथ इस दिशा में काम करने की सोची, लेकिन वो किसी मुकाम पर पहुंचते नजर नहीं आए। ऐसे में उन्हें बौद्ध धर्म के सिद्धांतों में उम्मीद की किरण दिखी और उन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन कर तुलना की और बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला किया।
डॉ. बीआर आंबेडकर समाज में दलितों की स्थिति, छुआछूत और भेदभाव से बहुत दुखी थे और उन्हें इसे दूर करने का हिंदू धर्म के तत्कालीन समाज में कोई आधार सूझ नहीं रहा था। उन्होंने वीर सावरकर और महात्मा गांधी समेत कई नेताओं के साथ इस दिशा में काम करने की सोची, लेकिन वो किसी मुकाम पर पहुंचते नजर नहीं आए। ऐसे में उन्हें बौद्ध धर्म के सिद्धांतों में उम्मीद की किरण दिखी और उन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन कर तुलना की और बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला किया।