‘जो आए बदरी, वो ना आए ओदरी’, बद्रीनाथ के बारे में क्यों प्रचलित है ये कहावत?
इस कहावत का अर्थ है कि, ‘जो मनुष्य एक बार बद्रीनाथ धाम के दर्शन कर लेता है उसे फिर दोबारा गर्भ में नहीं आना पड़ता। यानी एक बार मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद दूसरी बार उस मनुष्य को जन्म नहीं लेना पड़ता।’ वहीं शास्त्रों में भी कहा गया है कि व्यक्ति को कम से कम दो बार अपने जीवन में बद्रीनारायण मंदिर की यात्रा जरूर करनी चाहिए।
कैसे पड़ा इस धाम का नाम बद्रीनाथ?
अलग-अलग युगों में इस धाम के विभिन्न नाम प्रचलित रहे हैं। कलियुग में इस धाम को बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस पवित्र स्थल का यह नाम यहां बहुतायत में मौजूद बेर के वृक्षों के कारण पड़ा है। हालांकि इस मंदिर के नाम बद्रीनाथ के नामकरण के पीछे एक कहानी भी प्रचलित है…
नामकरण कथा- एक बार जब नारद मुनि भगवान विष्णु के दर्शन के लिए क्षीरसागर आए तो उन्होंने वहां लक्ष्मी माता को विष्णु भगवान के पैर दबाते हुए देखा। इस बात से आश्चर्यचकित होकर जब नारद मुनि ने भगवान विष्णु से इस के संदर्भ में पूछा, तो इस बात के लिए भगवान विष्णु ने स्वयं को दोषी पाया और तपस्या करने के लिए वे हिमालय को चले गए। तपस्या के दौरान जब नारायण योग ज्ञान मुद्रा में लीन थे, तब उन पर बहुत अधिक हिमपात होने लगा। नारायण पूरी तरह बर्फ से ढक चुके थे। उनकी इस हालत को देखकर माता लक्ष्मी बहुत दुखी हुईं और वे खुद विष्णु भगवान के पास जाकर एक बद्री के पेड़ के रूप में खड़ी हो गईं। इसके बाद सारा हिमपात बद्री की पेड़ के रूप में खड़ी हुईं माता लक्ष्मी पर होने लगा। तब मां लक्ष्मी धूप, बारिश और बर्फ से विष्णु भगवान की रक्षा कर रही थीं।
अपनी तपस्या के कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु की आंखें खुलीं तो उन्होंने माता लक्ष्मी को बर्फ से ढका हुआ पाया। तब नारायण ने लक्ष्मी मां से कहा कि, ‘हे देवी! आपने भी मेरे बराबर ही तप किया है। इसलिए आज से इस धाम पर मेरे साथ-साथ तुम्हारी भी पूजा की जाएगी और चूंकि आपने बेर यानी बद्री के पेड़ के रूप में मेरी रक्षा की है। इसलिए इस धाम को भी बद्री के नाथ यानी बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा।’