अपने घर का कर दिया था त्याग: नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। इनका जन्म उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में करीब 1900 के आसपास हुआ माना जाता है। इनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था। साल 1958 में उन्होंने अपना घर त्याग दिया था। इसके बाद ये पूरे उत्तर भारत में साधुओं की तरह विचरण करने लगे थे और इन्हें कई अलग-अलग नामों से पहचाना जाता था। कोई इन्हें लक्ष्मीदास तो कोई हांडी वाले बाबा और कोई तिकोनिया वाले बाबा के नाम से पुकारता था। गुजरात में इन्होंने ववानिया मोरबी में तपस्या की थी तो लोग इन्हें तलईया बाबा के नाम से भी पुकारने लगे थे। उन्होंने अपने शरीर का त्याग 11 सितंबर 1973 में वृंदावन में किया था।
हनुमान जी के भक्त थे बाबा नीम करोली: ऐसा कहा जाता है कि बाबा को 17 साल की उम्र में ही ईश्वर के बारे में विशेष ज्ञान प्राप्त हो गया था। वो हनुमान जी को अपना गुरु मानते थे। बाबा ने अपने जीवनकाल में हनुमान जी के करीब 108 मंदिर बनवाए हैं। मान्यता है कि बाबा नीम करोली ने हनुमान जी के अराधना से ही कई चमत्कारी सिद्धियां प्राप्ति की थी। बाबा एक दम सादा जीवन जीते थे। किसी को अपने पैर तक नहीं छूने देते थे। आडंबरों से दूर रहते थे।
बाबा नीब करौरी धाम के चमत्कारी किस्से:
-एक जनश्रुति ये है कि एक बार भंडारे के दौरान जब घी की कमी पड़ गई थी तब बाबा के आदेश पर पास की नदी से जल भरकर लाया गया। माना जाता है कि प्रसाद में इस्तेमाल किया गया वो जल घी में बदल गया।
-एक दूसरी जनश्रुति अनुसार बाबा ने कड़ी धूप में अपने एक भक्त को बादल की छतरी बनाकर उसे उसकी मंजिल तक पहुंचाया था।
-बाबा के भक्त और लेखर रिचर्ड अल्बर्ट ने बाबा पर लिखी पुस्तक ‘मिरेकल ऑफ लव’ में उनके चमत्कारों के बारे में बताया था।
-एक बार फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे। लेकिन बाबा के पास टिकट नहीं था। जिस कारण टिकट चेकर ने उन्हें अगले स्टेशन ‘नीब करोली’ में उतार दिया था। लेकिन जैसी ही ट्रेन चलाने के लिए गार्ड के हरी झंडी दिखाई तो ट्रेन एक इंच भी नहीं चली। कई बार कोशिश करने के बाद भी जब ट्रेन नहीं चली तो मजिस्ट्रेट जो बाबा को जानता था उसने ऑफिशल्स को बाबा से माफी मांगने को कहा। ऑफिशल्स ने बाबा से मांफी मांगी और उन्हें सम्मान से ट्रेन में बैठाया। बाबा के बैठते ही ट्रेन चल पड़ी। कहते हैं तभी से बाबा का नाम नीम करोली पड़ गया।