यह भी है कहानी
इस संबंध में साहित्यकार राकेश अयाची का कहना है कि 16वीं सदी में अकबर ने दरबार में तिलक लगाकर आने पर पाबंदी लगा दी थी, तब ओरछा के पराक्रमी हिंदू शासक मधुकर शाह ने बगावत कर दी थी। उनके तेवर के चलते अकबर को अपना फरमान वापस लेना पड़ा था। इससे अयोध्या के संतों को यह भरोसा था कि मधुकर शाह की हिंदूवादी सोच के बीच राम जन्मभूमि का भगवान श्रीराम का यह विग्रह ओरछा में पूरी तरह सुरक्षित रहेगा। इसीलिए उनकी महारानी कुंवर गणेश अयोध्या पहुंचीं तो संतों ने इस विग्रह को उन्हें दे दिया, जिसे महारानी ओरछा ले आईं। बुंदेला शासक मधुकर शाह की महारानी कुंवरि गणेश ने ही श्रीराम को अयोध्या से ओरछा लाकर विराजित किया था।
इतिहासकारों का यह है कहना
वहीं कुछ इतिहासकारों का कहना है कि रामराजा के लिए ओरछा के मंदिर का निर्माण कराया गया था, पर बाद में उन्हें सुरक्षा कारणों से मंदिर की बजाय रसोई में विराजमान किया गया। इसके पीछे तर्क ये है कि माना जाता था कि रजवाड़ों की महिलाएं जिस रसोई में रहती हैं, उससे अधिक सुरक्षा और कहीं नहीं हो सकती।
ओरछा में प्रचलित कई किंवदंतियां और कहानियां भगवान राम के जन्मस्थान अयोध्या और मध्य प्रदेश के ओरछा का संबंध जोड़ते हैं। इसको लेकर अक्सर अटकल लगाई जाती रहती है कि कहीं अयोध्या के राम जन्म भूमि की असली मूर्ति ओरछा के रामराजा मंदिर में तो विराजमान नहीं? और भगवान राम या राम मंदिर से जुड़ी किसी घटना के सामने आते ही ओरछा का रामराजा मंदिर सुर्खियों में आ जाता है।
अब मध्य प्रदेश सरकार ओरछा के राम राजा मंदिर का विकास करना चाहती है, इसके लिए यहां रामराजा लोक का निर्माण प्रस्तावित है, जिसका 4 सितंबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भूमि पूजन किया। इसकी वजह से फिर राम राजा मंदिर ओरछा सुर्खियों में है और लोग इससे जुड़ी कहानियां गूगल पर सर्च कर रहे हैं।