वृषभ संक्रांति का फलः जानकारों की मानें तो वृषभ संक्रांति 2023 शुभ फलदायक है। वृषभ संक्रांति खासतौर पर विद्वान और शिक्षित लोगों के लिए शुभफलदायक है। इसके प्रभाव से वस्तुओं की लागत सामान्य रहेगी। लोगों को स्वास्थ्य लाभ होगा, राष्ट्रों के बीच संबंध मधुर होंगे, अनाज के भंडारण में वृद्धि होगी। हालांकि इसके चलते भय और चिंता भी बनी रहेगी।
अपरा एकादशी और वृषभ संक्रांति का महत्व
मान्यताओं के अनुसार अपरा एकादशी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है। साथ ही व्रत रखने वाले को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, सूर्य देव को अर्घ्य देने और भगवान विष्णु-माता लक्ष्मी की पूजा से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। इस व्रत के प्रभाव से शरीर भी निरोगी होता है। सबसे खास यह है कि इसी दिन वृषभ संक्रांति भी है, जिससे इस दिन पूजा और दान से यश, मान सम्मान, वैभव भी प्राप्त होगा। सूर्य संबंधी दोषों का भी निवारण होता है। इस दिन भगवान शिव के ऋषभ रूद्र स्वरूप की पूजा की भी परंपरा है।
अपरा एकादशी पूजा विधि (Apara Ekadashi Puja Vidhi)
1. अपरा एकादशी व्रत की तैयारी एक दिन पहले दशमी से ही शुरू हो जाती है, इस दिन से व्यक्ति को लहसुन, प्याज जैसी तामसिक खाद्य सामग्री से खुद को दूर कर लेना चाहिए। यानी 14 मई से ही व्रत के अनुशासन से बंध जाना होगा।
2. एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और जगत के पालनहार भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रणाम करें।
3. इसके बाद दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर पवित्र नदी या नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान ध्यान के बाद व्रत का संकल्प लें।
4. इसके बाद आचमन कर खुद को शुद्ध करें और पीले रंग का नया वस्त्र पहनें और भगवान भास्कर को अर्घ्य दें।
5. भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं, वंदे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेकनाथम् ॥ मंत्र का जाप करें।
6. इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
7. इस दिन वृषभ संक्रांति पड़ रही है, इसलिए भगवान भास्कर का भी ध्यान करें।
8. भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी को फल, पीले फूल अर्पित करें और धूप, दीप, कपूर-बाती से आरती करें।
9. भगवान को भोग में पीली मिठाइयां चढ़ाएं।
10. एकादशी व्रत कथा का पाठ करें और भगवान की आरती गाएं।
11. इसके बाद दिन भर उपवास रखें, दिन में सिर्फ एक बार फलाहार और जल ग्रहण करें।
12. शाम को फिर श्रीविष्णु की पूजा और आरती करें, इसके बाद फलाहार करें।
13. फिर रात्रि जागरण कर भगवान के नाम का स्मरण करें और अगले दिन पूजा के बाद जरूरतमंदों को भोजन और ब्राह्मणों को दान देने के बाद व्रत का पारण करें।
अपरा एकादशी की कथा अपरा एकादशी की कथा और उसका महत्व भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। इसके अनुसार अपरा एकादशी व्रत करने से प्रेत योनि, ब्रह्म हत्या आदि से मुक्ति मिलती है। अपरा एकादशी कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नाम के एक धर्मात्मा राजा थे, उनका छोटा भाई वज्रध्वज क्रूर, अधर्मी और अन्यायी था। यह बड़े भाई महीध्वज से घृणा और द्वेष करता था। राज्य पर आधिपत्य के लिए एक रात उसने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसकी देह को जंगल में पीपल के नीचे गाड़ दिया।
अकाल मृत्यु के कारण राजा महीध्वज प्रेत योनि में पहुंच गए और प्रेतात्मा बनकर उसी पीपल के पेड़ पर रहने लगे। अब प्रेतात्मा बने महीध्वज उत्पात मचाते थे। एक बार धौम्य ऋषि ने प्रेत को देख लिया और माया से उसके बारे में सबकुछ पता किया और ॠषि ने प्रेत को पेड़ से उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। साथ ही उनकी मुक्ति के लिए ऋषि ने अपरा एकादशी व्रत रखा और श्रीहरि विष्णु से राजा को प्रेत योनि से मुक्त करने के लिए प्रार्थना की। इस एकादशी व्रत के पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। राजा बहुत खुश हुआ और उसने ॠषि को धन्यवाद दिया और व्रत के प्रभाव से बैकुंठ लोक पहुंच गया।