धर्म और अध्यात्म

अपरा एकादशी कल, यह है पूजा की आसान विधि

ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा और अचला एकादशी (Apara Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। वैसे तो भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित एकादशी व्रत अत्यंत कल्याणकारी है, लेकिन इनमें भी अपरा एकादशी का खास महत्व है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा से भगवान शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और अपार तरक्की, मोक्ष का वरदान देते हैं। लेकिन इस साल अपरा एकादशी और भी खास है क्योंकि इसी दिन वृषभ संक्रांति (Vrishabh Sankranti ) और भद्रकाली जयंती भी है।

May 14, 2023 / 09:25 pm

Pravin Pandey

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अपरा एकादशीः पंचांग के अनुसार अपरा एकादशी 15 मई सोमवार 2023 को पड़ेगी। ज्येष्ठ एकादशी तिथि की शुरुआत 15 मई सुबह 2.46 बजे हो रही है और यह तिथि 16 मई सुबह 1.03 बजे संपन्न हो रही है। जबकि इस व्रत का पारण 16 मई को सुबह 6.41 से 8.13 बजे के बीच होगा।
अपरा एकादशी का महत्व
मान्यताओं के अनुसार अपरा एकादशी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है। साथ ही व्रत रखने वाले को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, सूर्य देव को अर्घ्य देने और भगवान विष्णु-माता लक्ष्मी की पूजा से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। इस व्रत के प्रभाव से शरीर भी निरोगी होता है। सबसे खास यह है कि इसी दिन वृषभ संक्रांति भी है, जिससे इस दिन पूजा और दान से यश, मान सम्मान, वैभव भी प्राप्त होगा। सूर्य संबंधी दोषों का भी निवारण होता है। इस दिन भगवान शिव के ऋषभ रूद्र स्वरूप की पूजा की भी परंपरा है।
अपरा एकादशी पूजा विधि (Apara Ekadashi Puja Vidhi)


1. अपरा एकादशी व्रत की तैयारी एक दिन पहले दशमी से ही शुरू हो जाती है, इस दिन से व्यक्ति को लहसुन, प्याज जैसी तामसिक खाद्य सामग्री से खुद को दूर कर लेना चाहिए। यानी 14 मई से ही व्रत के अनुशासन से बंध जाना होगा।
2. एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और जगत के पालनहार भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रणाम करें।
3. इसके बाद दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर पवित्र नदी या नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान ध्यान के बाद व्रत का संकल्प लें।

4. इसके बाद आचमन कर खुद को शुद्ध करें और पीले रंग का नया वस्त्र पहनें और भगवान भास्कर को अर्घ्य दें।
5. भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं, वंदे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेकनाथम् ॥ मंत्र का जाप करें।
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6. इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
7. इस दिन वृषभ संक्रांति पड़ रही है, इसलिए भगवान भास्कर का भी ध्यान करें।
8. भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी को फल, पीले फूल अर्पित करें और धूप, दीप, कपूर-बाती से आरती करें।
9. भगवान को भोग में पीली मिठाइयां चढ़ाएं।

10. एकादशी व्रत कथा का पाठ करें और भगवान की आरती गाएं।
11. इसके बाद दिन भर उपवास रखें, दिन में सिर्फ एक बार फलाहार और जल ग्रहण करें।
12. शाम को फिर श्रीविष्णु की पूजा और आरती करें, इसके बाद फलाहार करें।
13. फिर रात्रि जागरण कर भगवान के नाम का स्मरण करें और अगले दिन पूजा के बाद जरूरतमंदों को भोजन और ब्राह्मणों को दान देने के बाद व्रत का पारण करें।

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