अनंत सूत्र की 14 गांठें इनका प्रतीक
अब बताते हैं इन चौदह गांठों के बारे में, ये गांठे भूलोक, भुवलोक, स्वलोक, महलोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल, और पताल लोक का प्रतीक हैं।अनंत चतुर्दशी व्रत पूजा विधि (Anant Chaturdashi Vrat Puja Vidhi)
- इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान ध्यान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- इसके बाद कलश स्थापना कर, कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से बने अनंत की स्थापना करें।
- इसके आगे कुमकुम, केसर और हल्दी के रंग से बनाया हुआ कच्ची डोर का 14 गांठों वाला अनंत रखें।
- भगवान विष्णु के अनंत रूप का ध्यान कर उन्हें रोली, मौली, चंदन, फूल, अगरबत्ती, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग) अर्पित करना चाहिए, सभी वस्तुओं को चढ़ाते समय “ऊँ अनन्ताय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।
- अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान को खीर का भोग जरूर लगाएं और तुलसी का पत्ता इसमें जरूर डालें।
- इसके बाद हे वासुदेव, इस अनंत संसार रूपी महासमुद्र में डूबे हुए लोगों की रक्षा करो और उन्हें अपने ध्यान करने में संलग्न करो। अनंत रूप वाले प्रभु तुम्हें नमस्कार है, प्रार्थना करें।
6. इसके बाद यह भगवान अनंत की प्रार्थना पढ़ें
नमस्ते देवदेवेशे नमस्ते धरणीधर।
नमस्ते सर्वनागेंद्र नमस्ते पुरुषोत्तम।।
न्यूनातिरिक्तानि परिस्फुटानि।
यानीह कर्माणि मया कृतानि।।
सर्वाणि चैतानि मम क्षमस्व।
प्रयाहि तुष्ट: पुनरागमाय।।
दाता च विष्णुर्भगवाननन्त:।
प्रतिग्रहीता च स एव विष्णु:।।
तस्मात्तवया सर्वमिदं ततं च।
प्रसीद देवेश वरान् ददस्व।।
9. इस रक्षासूत्र को बांधते समय इस मंत्र का जाप करें
अनन्तसंसारमहासमुद्रे मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव।
अनन्तरूपे विनियोजितात्मामाह्यनन्तरूपाय नमोनमस्ते।।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा (Anant Chaturdashi Vrat Katha)
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा के अनुसार प्राचीन काल में सुमन्तु नाम के ऋषि थे, उनकी शीला नाम की एक बेटी थी। शीला सुशील और गुणी थी। समय आने पर सुमन्तु ऋषि ने उसका विवाह कौण्डिन्यमुनि से कर दिया।
घटनाक्रम के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को शीला ने अनंत चतुर्दशी का व्रत किया और भगवान अनंत की पूजा करने के बाद अनंतसूत्र अपने बाएं हाथ पर बांध लिया। भगवान अनंत की कृपा से शीला के घर में सुख-समृद्धि आ गई और उसका जीवन सुखमय हो गया।
कालांतर में किसी बात पर कौण्डिन्यमुनि को शीला पर क्रोध आ गया। इससे गुस्साए कौण्डिन्यमुनि ने शीला के हाथ में बंधा अनंतसूत्र तोड़कर आग में डाल दिया। इसके दुष्प्रभाव से उनका सुख-चैन, ऐश्वर्य-समृद्धि, धन-संपत्ति आदि सभी नष्ट हो गए और वे बहुत दु:खी रहने लगे।
एक दिन अत्यंत दु:खी होकर कौण्डिन्यमुनि भगवान अनंत की खोज में निकल पड़े। तब भगवान ने उन्हें एक वृद्ध ब्राह्मण के रूप में दर्शन दिए और उनसे अनंत व्रत करने को कहा।
कौण्डिन्यमुनि ने विधि-विधान पूर्वक अपनी पत्नी शीला के साथ श्रृद्धा और विश्वास से अनंत नारायण की पूजा की और व्रत किया। अनंत व्रत के प्रभाव से उनके अच्छे दिन फिर लौट आए और उनका जीवन सुखमय हो गया।