बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर ने बताए जीवन में सफलता के सूत्र
– जीवन में सफलता चाहिए हनुमान जी के चरित्र को जीवन में उतार लेना चाहिए।
– सफल आदतें डालने से सफलता मिलती है। विफल आदतें डालने से विफलताएं।
– दौड़ते घोड़े और सूर्य का फोटो कमरे में लगाने से सफलता नहीं मिलती।
– सफलता मिलती है सूर्य उदय से पहले जागने में और घोड़े की तरह मेहनत करने में।
– हनुमान चालीसा को पढ़ना चाहिए रटना नहीं। राजधानी में राम रस भी होना चाहिए।
– हम कितनी भी उपलब्धि पा लें, मुस्कान सिर्फ रामरस को सुनने में आती है।
कथा स्थल की व्यवस्था ऐसे समझें
55 एकड़ मैदान में पंडाल, 150 लोगों ने पहले दिन दी सांस्कृतिक प्रस्तुति
1.50 लाख से अधिक आमंत्रण पत्र किए वितरित, 300 से अधिक सामाजिक संगठनों ने की ठहरने की व्यवस्था
5 हजार से अधिक सेवादार संभाल रहे व्यवस्था, 10 लाख श्रद्धालुओं के लिए भोजन,पार्किंग व चिकित्सा व्यवस्था
200 एकड़ में 13 प्रकार की पार्किंग की व्यवस्था, 40 हजार दो पहिया व चार पहिया वाहन पार्क हो सकेंगे
2 किमी की दूरी पर पार्किंग के समीप नि:शुल्क बसें उपलब्ध, 300 अस्थाई टायलेट बनाए गए हैं
100 से अधिक कथा स्थल पर बड़ी-बड़ी एलइडी, 200 से ज्यादा कूलर और पंखे 20 चिकित्सा शिविर
॥ श्री हनुमान चालीसा ॥
॥ दोहा॥श्रीगुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि ॥
सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं
हरहु कलेस बिकार ॥ ॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥
कुमति निवार सुमति के संगी ॥ कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४ हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥ शंकर स्वयं/सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥
राम काज करिबे को आतुर ॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥ लाय सजीवन लखन जियाए ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥ रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२ सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस-कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
नारद सारद सहित अहीसा ॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥ तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६ तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥ दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥ आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥ भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ संकट तै हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८ चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥ अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
***** बर दीन जानकी माता ॥
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२ तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ अंतकाल रघुवरपुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥ और देवता चित्त ना धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६ जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥ जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४० ॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप ॥