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सोए हुए भाग्य को चमकाने का काम करता है आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ, जानिए विधि और नियम

मान्यता है प्रतिदिन आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से सोई हुई किस्मत जाग जाती है। अगर रोजाना इसका पाठ संभव न हो तो सप्ताह में एक दिन रविवार को इसे जरूर करें।

Jan 30, 2022 / 10:34 am

Laveena Sharma

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सोए हुए भाग्य को चमकाने का काम करता है आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ, जानिए विधि और नियम

ज्योतिष शास्त्र अनुसार सूर्य ग्रह व्यक्ति के जीवन में प्रसिद्धि, यश, तेज, आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति का कारक ग्रह माना जाता है। जिसकी कुंडली में ये ग्रह मजबूत होता है उसे जीवन में तमाम सुख प्राप्त होते हैं। ऐसा व्यक्ति खूब नाम कमाता है। सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना सबसे ज्यादा उत्तम माना गया है। कहते हैं इस स्तोत्र का प्रतिदिन सुबह नियमित रूप से पाठ करने से जीवन में सकारात्मक परिणाम हासिल होने लगते हैं। जानिए इस पाठ को करने की सही विधि।

आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ की विधि:
-ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। उसके बाद एक तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें रोली या चंदन और पुष्प डालकर सूर्य देव को अर्पित करें।
-सूर्य देव को जल अर्पित करते समय गायत्री मंत्र का जाप करें और सूर्यदेव के समक्ष आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
-इस पाठ को शुक्ल पक्ष के किसी रविवार को जरूर करें।
-यदि इस पाठ का पूर्ण फल प्राप्त करना चाहते हैं तो रोजाना सूर्योदय के समय ये पाठ करें।
-अगर रोजाना ये पाठ सभव न हो तो आप प्रत्येक रविवार को भी इसे कर सकते हैं।
-आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कर रहे हैं तो रविवार के दिन मांसाहार, मदिरा और तेल का प्रयोग न करें।

आदित्य हृदय स्तोत्र के लाभ: कहते हैं इस पाठ को करने से व्यक्ति के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। जिससे व्यक्ति हर काम में अच्छा प्रदर्शन कर पाता है। इस पाठ से भय दूर हो जाता है और करियर में तरक्की मिलती है। अगर कोई सरकारी विवाद चल रहा हो तो आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना लाभकारी होता है।

आदित्य हृदयस्तोत्रम्
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् l
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ll
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्l l
उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवानृषिः ll
राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम् l
येन सर्वानरीन्वत्स समरे विजयिष्यसि ll
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् l
जयावहं जपेन्नित्यं अक्ष्य्यं परमं शिवम् ll
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम् l
चिंताशोकप्रशमनं आयुर्वर्धनमुत्तमम् ll
रश्मिमंतं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् l
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ll
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः l
एष देवासुरगणाँल्लोकां पाति गभस्तिभिः ll
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः l
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमोह्यपां पतिः ll
पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः l
वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ll
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् l
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः ll
हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् l
तिमिरोन्मथनः शंभुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान् ll
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः l
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः ll
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुस्सामपारगः l
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः ll
आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः l
कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भवः ll
नक्ष्त्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः l
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोऽस्तु ते ll
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः l
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ll
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः l
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ll
नमः उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः l
नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः ll
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे l
भास्वते सर्वभक्षय रौद्राय वपुषे नमः ll
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने l
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ll
तप्तचामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे l
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ll
नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः l
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ll
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः l
एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ll
वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च l
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः ll
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च l
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ll
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् l
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ll
अस्मिन्क्शणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि l
एवमुक्त्वा तदाऽगस्त्यो जगाम च यथागतम् ll
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा l
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ll
आदित्यं प्रेक्श्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवां l
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ll
रावणं प्रेक्श्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत् l
सर्व यत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत् ll
अथ रविरवदन्निरीक्श्य रामं l
मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः ll
निशिचरपतिसंक्शयं विदित्वा l
सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ll

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