केदारनाथ त्रासदी में बह गया था समाधि स्थलः आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के कालपी में हुआ था, इन्होंने आठ साल की उम्र में सभी धर्म ग्रंथों का ज्ञान हासिल कर संन्यास ले लिया था। बाद में इन्होंने सनातन धर्म की पुनःस्थापना की, कुरीतियों को भी दूर किया, केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, चार पीठों की स्थापना कराई, कई ग्रंथों पर भाष्य, टीका लिखी और भारत में अद्वैत वेदांत का प्रचार किया। स्मार्त संप्रदाय के लोग इन्हें भगवान शिव का अवतार मानते हैं।
कहा जाता है कि जब उनका धरती पर आने का उद्देश्य पूरा हो गया तो 32 वर्ष की उम्र में केदारनाथ पहुंचे और मंदिर में भगवान शंकर से बात की, उनसे देह त्यागने की अनुमति लेकर बाहर आए और एक जगह शिष्यों को रोका और कहा पीछे मुड़कर न देखना। मान्यता है कि इसके बाद अंतर्धान हो गए।
ये भी पढ़ेंः Shankarachary Jayanti: सुकर्मा योग में मनेगी शंकराचार्य जयंती, जानिए आठ साल के बालक को मां ने क्यों दी संन्यासी बनने की अनुमति जहां आदि शंकराचार्य अंतर्धान हुए बाद में वहां (केदारनाथ मंदिर से करीब 20 मीटर दूर) शिवलिंग की स्थापना की गई और शंकराचार्य की समाधि बनाई गई। 2013 की केदारनाथ त्रासदी में आदि शंकराचार्य का समाधि स्थल बह गया था। 2021 में अंतिम विश्राम स्थल का पुनः निर्माण कराकर उद्घाटन किया गया।
पीएम नरेंद्र मोदी ने किया था उद्घाटनः उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ मंदिर परिसर में पांच नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दौरा किया और यहां श्री आदि शंकराचार्य अंतिम विश्राम स्थल का उद्घाटन किया।