जब पता चला कोरोना है, पैर के नीचे से जमीन खिसक गई, लेकिन जीतकर आए तो दिया यह संदेश
आज देशभर में लॉकडाउन के दूसरे चरण की समाप्ति हो जाएगी, हालांकि कोरोना के संक्रमण की रोकथाम के लिए 4 मई से तीसरा चरण लागू हो जाएगा। केन्द्र और राज्य सरकार की गाइड लाइन के अनुसार मालवा के 4 जिले उज्जैन, रतलाम, देवास और शाजापुर में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढऩे के साथ ही कोरोना को हराने वाले भी सामने आए हैं। कई संक्रमित अब ठीक होकर वापस अपने घर लौट गए हैं तो नए सप्ताह की शुरुआत के साथ ही कुछ और संक्रमित भी स्वस्थ्य होने के बाद घर वापसी की तैयारी में जुटे हुए है।
Corona report: रेड जोन से ओरेंज जोन में आया टोंक जिला , 66 कोरोना पॉजीटिव मरीजों की सेम्पलिंग रिपोर्ट दो बार आई नेगेटिव
रतलाम. आज देशभर में लॉकडाउन के दूसरे चरण की समाप्ति हो जाएगी, हालांकि कोरोना के संक्रमण की रोकथाम के लिए 4 मई से तीसरा चरण लागू हो जाएगा। केन्द्र और राज्य सरकार की गाइड लाइन के अनुसार मालवा के 4 जिले उज्जैन, रतलाम, देवास और शाजापुर में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढऩे के साथ ही कोरोना को हराने वाले भी सामने आए हैं। कई संक्रमित अब ठीक होकर वापस अपने घर लौट गए हैं तो नए सप्ताह की शुरुआत के साथ ही कुछ और संक्रमित भी स्वस्थ्य होने के बाद घर वापसी की तैयारी में जुटे हुए है। ये इस महामारी के खिलाफ मिल रहे सुखद संकेत है, कोरोना पर जीत हासिल करने वाले इन लोगों से ‘पत्रिका टीमÓ ने विशेष चर्चा कर जाना वे कैसे लड़ें और वायरस से जीते।
VIDEO इंदौर से रेलवे कर रहा श्रमिक ट्रेन चलाने की तैयारीबीमारी भूल गए, स्वस्थ होकर घर लौटे देवास जिले के पानीगांव में किसी ने नहीं सोचा था कि यहां भी कोरोना की आमद हो जाएगी लेकिन यहां भी एक परिवार इसकी चपेट में आ गया। जब पता चला कि रिपोर्ट पॉजिटिव है तो मन में डर बैठा। घबराहट हुई लेकिन 15 दिनों तक डॉक्टरों ने जो इलाज किया, जो मोटिवेशन दिया उसके बाद ये लोग बीमारी भूल गए और स्वस्थ होकर घर लौटे। इन्हीं में से एक तीन साल का बालक भी था जो कोरोना संक्रमित था लेकिन जब पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौटा तो बच्चे के पिता ने डॉक्टरों व नर्सों को बेशुमार दुआएं दी। दरअसल पानीगांव के तीन वर्षीय बच्चे की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। हाटपीपल्या निवासी जिस व्यक्ति की कोरोना के कारण मौत हुई उसका ससुराल पानीगांव में था। उसी के संपर्क में आने से ससुरालवाले संक्रमित हुए, इनमें बच्चा भी था। बच्चे को जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया। परिजन डरे हुए थे, मन में घबराहट भी थी लेकिन डॉक्टरों और नर्सों ने न सिर्फ अच्छा इलाज किया बल्कि कुशल व्यवहार से डर को भी दूर किया। इसी का नतीजा हुआ कि गत दिनों बच्चे की रिपोर्ट नेगेटिव आई और उसे डिस्चार्ज किया। डॉक्टरों व स्टाफ ने तालियां बजाई। स्वागत किया तो बच्चों के परिजनों ने डॉक्टरों-नर्सों को दुआएं दी। बच्चे के पिता ने बताया कि जब बेटे की रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो बहुत डर गए थे। कोरोना की खबरें सुनकर मन वैसे ही भयभीत था। यह भी सुना था अस्पताल में ठीक से इलाज नहीं होता लेकिन जब जिला अस्पताल आए तो डर दूर हो गया। डॉ. अतुल पवनीकर तथा स्टॉफ ने न सिर्फ अच्छा इलाज किया बल्कि बच्चे का बहुत ध्यान रखा।
एक मई से चलेगी ट्रेन, इन स्टेशन पर होगा ठहरावभरोसा ही नहीं हुआ कोरोना हो गया उज्जैन मैं फिरोज (परिवर्तित नाम)…पुराने शहर में रहता हूं और स्थानीय मंडी में व्यवसाय करता हूं, अब से सवा महीने पहले मैं अन्य लोगों की तरह ही सामान्य था। मुझे न तो बुखार आया और न ही सर्दी-जुकाम हुआ। क्षेत्र में कोरोना संक्रमण के चलते जांच हुई तो मुझे बताया कि कोरोना पॉजिटिव हंू। मैं और मेरा परिवार पूरा हैरत में पड़ गया, मुझे खुद विश्वास नहीं हो रहा था कि मुझे कोराना हो गया। कुछ महीने पहले ही मेरा विवाह हुआ था, पत्नी भी चिंचित हो गई। उस समय मुझे माधवनगर अस्पताल में रखा गया। यहां चार-पांच दिन रखने के बाद आर्डी-गार्डी मेडिकल कॉलेज शिफ्ट कर दिया। अस्पताल में डॉक्टर मुझे लगातार चेक करते थे, मैंने भी डॉक्टर द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन किया। समय पर दवाइयां लेने के साथ अन्य मरीजों से भी दूरी बनाकर रखी। अस्पताल में सब कुछ ठीक था लेकिन भोजन पसंद के अनुसार नहीं था, इससे कई बार परेशानी भी होती थी, हालांकि मैं ठीक था। परिजनों से चर्चा तो नहीं होती लेकिन वे मुझे लेकर परेशान अवश्य थे। करीब 17 दिन अस्पताल में रहने के बाद मेरी रिपोर्ट नेगेटिव आई और मुझे घर जाने का कह दिया गया। जब मैं घर पहुंचा तो राहत की सांस ली। मुझे डॉक्टर व कलेक्टर ने कहा था कि आप होम आइसोलेट में रहना, मैें उनके निर्देश का पालन अब भी कर रहा हूं, परिजनों से दूरी बनाकर रखी है। सादा खाना ही लेेता हूं तो गर्म पानी पी रहा हूं। मैं लोगों से यही अपील करना चाहता हूं कि वे एक तय दूरी बनाकर रखें, घर से बाहर ही नहीं निकले। अस्पताल में भर्ती मरीज भी डॉक्टर के बताए नियमों का पालन रखें, वे आपको कोरोना से मुक्त कर देंगे।
लॉकडाउन – 2.0 : 3 मई के बाद भी करना पड़ सकता है ट्रेन और प्लेन में सफर के लिए इंतजारपैर के नीचे से जमीन खिसक गई शाजापुर में मैं मो. साजिद, मोचीखेड़ा का निवासी हंू, पहले तो कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन जब पता लगा कि इंदौर से जो परिजन आए थे उनको कोरोना हो गया है। ऐसे में मुझे और पूरे परिवार को स्वास्थ्य विभाग की टीम अपने साथ ले गई और क्वॉरंटीन सेंटर में रख दिया। यहां पर सभी के सैम्पल लिए, पहले सैम्पल की जांच रिपोर्ट को लेकर बैचेनी होने लगी। जब रिपोर्ट आई और मुझे बताया कि मैं कोरोना पॉजिटिव हूं तो ऐसा लगा मानो पैर के नीचे से जमीन खिसक गई। अस्पताल के वार्ड में मुझे और मेरे साथ भतीजे रिजवान को भर्ती करा दिया। यहां पर पहले से ही एक पुलिसकर्मी भर्ती था। एक वार्ड जिसमें हम तीनों पॉजिटिव मरीज थे। इस माहौल को देखकर सहम गया था, लेकिन जब डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी आए और उन्होंने हम सभी को हिम्मत दिलाई कि ये बीमारी से हम अपनी इच्छा शक्ति को बढ़ाकर जीत सकते हैं। डॉक्टरों की टीम और स्टॉफ ने हमें इस बीमारी से लड़कर जीतने का हौसला दिया। जिस तरह घर पर कोई सदस्य के बीमार होने पर उसकी देखभाल की जाती है उसी तरह स्टॉफ ने हमारी देखभाल की। सुबह से नाश्ता-चाय, फिर दोपहर का खाना, फिर शाम की चाय और रात को खाना निर्धारित समय पर दिया। दवाई भी समय-समय पर देते, स्टॉफ हर समय हमें यही कहता था कि वे जल्द ही ठीक हो जाएंगे और लोगों के सामने उदाहरण पेश करेंगे। महामारी को मात देकर बाहर आने में डॉक्टर और स्टॉफ का ही सबसे बड़ा योगदान है, हमें इस बीमारी से न सिर्फ अपने आप को बचाना है, बल्कि अपने पड़ोस, क्षेत्र और देश को भी बचाना है, इसके लिए संकल्पित होना पड़ेगा।
कोरोना के संकट में बेटियों ने निभाया फर्ज: मां को दिया कांधा और मुखाग्निपरिवार घबरा गया था रतलाम में कोरोना पॉजिटिव मिलने की सूचना के बाद शब्बीर भाई बिरमावल वाला का परिवार घबरा गया था। उन्हें किसी तरह की आशा नहीं थी कि क्वॉरंटीन सेंटर और कोविड अस्पताल में क्या होगा और कैसी व्यवस्थाएं होगी लेकिन जब कोरोना को मात देकर लौटे तो उनके अपनों की खुशी का ठिकाना नहीं था। शब्बीर भाई का कहते है कि संभवत ऐसी सुविधा और ऐसा ख्याल हम अपने घर में भी नहीं रख सकते थे, जो मेडिकल कॉलेज में वहां के डॉक्टरों और अन्य लोगों ने रखा। यहीं नहीं उनके और परिवार के रोजे शुरू होने के बाद क्वॉरंटीन सेंटर में सेहरी और रोजा इफ्तार का भी पूरा ध्यान रखा गया। शब्बीर भाई की कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट आने के बाद उनकी पत्नी राहिदा व बेटे मुर्तजा को भी क्वारंटीन सेंटर में रखा गया था। जिस दिन कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी मिली। उस समय पूरा परिवार घबरा गया था और सोचने लगा था कि अब क्या होगा। जब डॉक्टरों की टीम उन्हें लेने उनके घर पहुंची तो बहुत ही असहज महसूस कर रहे थे। एंबुलेंस बैठकर जब वह मेडिकल कॉलेज पहुंचे और वहां कदम रखने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि उनकी शंका है, ठीक नहीं थी। कोविड के लिए तैयार अस्पताल के अंदर हर तरह की सुविधाएं थी। दोनों टाइम खाना, सुबह नाश्ता, चाय, रात को दूध और दो समय डॉक्टरों द्वारा जांच की जाती थी, जिससे दूसरे दिन हमारे मन में डॉक्टर और उनकी टीम के प्रति सम्मान बढ़ गया था। शब्बीर भाई की माने तो इसी बीच रोजे शुरू होने पर सेहरी और रोजा इफ्तार के समय जो चीजें जरूरी थी। वह सब चीजें हमें अस्पताल में जिला प्रशासन की तरफ से उपलब्ध करा दी गई। हमें किसी चीज जरूरत पड़ती और हम डॉक्टर को फोन लगाते तो तुरंत हमें दवाई, गोली सहित अन्य सविधाएं उपलब्ध करा दी जाती। सचमुच बहुत ही नेक काम में हमारा साथ दिया है और हम जितनी तारीफ करें कम है।