MUST READ : दिवाली 2019 की अमावस्या पर ऐसे करें पितृ दोष शांति बता दे कि वर्ष 2018 में यहां पर मंदिर में माता का श्रृंगार करीब 200 करोड़ रुपए याने की 2 अरब रुपए से किया गया था। जब वर्ष 2016 में नोटबंदी हुई तब उसके पूर्व ही दिवाली का त्यौहार हो गया था। बता दे कि नोटबंदी 8 नवंबर 2016 को हुई थी, जबकि दिवाली का त्यौहार 30 अक्टूबर को था। ये परंपरा यहां पर वर्षो पूर्व से है। बताते है कि राज परिवार के समय से ये परंपरा चली आ रही है कि मंदिर को बेहतर तरीके से सजाया जाता है। बाद में जब राज परिवार का दखल समाप्त हुआ तो स्थानीय कारोबारियों ने इस कार्य को अपने हाथ में ले लिया।
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हर गड्डी का रहता हिसाब बड़ी बात है कि रतलाम के माणकचौक, चांदनीचौक सहित प्रमुख कारोबारी क्षेत्र के व्यापारी इन नोट की गड्डी को मंदिर को सजाने के लिए देते है। इतना ही नहीं, स्थानीय रहवासी ही अपनी तिजोरी में से आभुषण निकलकर देते है। मंदिर समिति सभी का हिसाब – किताब रखती है। पिछले वर्ष से तो मंदिर में दक्षिण के राज्यों से भी लोग दर्शन को आए थे। बताते है कि ये धार्मिक मान्यता है कि जो अपने रुपए यहां दिवाली में मंदिर में श्रृृंगार के लिए देता है पूरे वर्ष उस परिवार पर कोई विपदा नहीं आती है।
हर गड्डी का रहता हिसाब बड़ी बात है कि रतलाम के माणकचौक, चांदनीचौक सहित प्रमुख कारोबारी क्षेत्र के व्यापारी इन नोट की गड्डी को मंदिर को सजाने के लिए देते है। इतना ही नहीं, स्थानीय रहवासी ही अपनी तिजोरी में से आभुषण निकलकर देते है। मंदिर समिति सभी का हिसाब – किताब रखती है। पिछले वर्ष से तो मंदिर में दक्षिण के राज्यों से भी लोग दर्शन को आए थे। बताते है कि ये धार्मिक मान्यता है कि जो अपने रुपए यहां दिवाली में मंदिर में श्रृृंगार के लिए देता है पूरे वर्ष उस परिवार पर कोई विपदा नहीं आती है।